राग-द्वेष को छोड़ने से जीवन सुखी बन सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

राग-द्वेष को छोड़ने से जीवन सुखी बन सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

लूणकरणसर, 23 मई, 2022
मानव के रूप में देव पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः लगभग 20 किमी का विहार कर लूणकरणसर पधारे। मंगल पाथेय प्रदान करते हुए महायायावर ने फरमाया कि संसार में हम सुखी कैसे रह सकते हैं। आगम वाङ्मय में सुखी जीवन जीने के उपाय बताए गए हैं। पहला उपाय हैµअपने आपको तपाओ, सुकुमारता को छोड़ो। सुविधावादी मनोवृत्ति को छोड़ो। कठिनाई के साथ भी कुछ जीने का अभ्यास करो। गर्मी को भी कुछ सह सकें, यह मनोभाव हमारा रहे। मनोबल रहे। कठिन काम करने का भी हमारा मनोबल हो। जीवन में विकास करना है तो असुविधापूर्वक रहने का मनोभाव हो। एक प्रसंग से समझाया कि सहन करना कठिन काम है। सच बोलना भी कठिन काम है। ऊँचे लक्ष्य को पाने के लिए कठिनाई को झेलना चाहिए, जिससे ज्यादा अच्छी चीज मिलेगी। ईमानदारी के रास्ते पर चलना भी कठिन काम है। ईमानदारी परेशान हो सकती है, परंतु परास्त नहीं होती। कठिनाई को झेलें। आगे बहुत अच्छा तत्त्व मिलने वाला है।
साधु-साध्वियाँ विहार में कितनी कठिनाईयाँ सहन करते हैं। कामनाओं को भी संतुलित-अतिक्रांत कर लो तो दुःख भी अतिक्रांत कम जो जाएगा। आदमी की ईच्छाएँ पूरी नहीं होती हैं तो दुःखी बन जाता है। कामना दुःख का एक बड़ा कारण है। कामनाओं को कम कर परिग्रह की सीमा कर लें। भोग-उपभोग में सीमा हो जाए, यह गृहस्थ जीवन का संयम है। तीसरा उपाय हैµद्वेष का छेदन करो। ईर्ष्या किसी से मत रखो। सबके प्रति मंगलभावना रहे। दूसरों को दुःखी देखकर हम कभी सुखी न बनें। दूसरों को सुखी देखकर हम कभी दुःखी न बनें। दुःखियों के प्रति करुणा रखें। लोकोत्तर अनुकंपा करें। चित्त समाधि पहुँचाने का काम करें। चौथा उपाय बतायाµराग भाव को दूर करो। पदार्थों में जितनी आसक्ति होती है, वह दुःख का कारण है। इन चारों को दूर करने से जीवन में सुखी बन सकते हैं। गृहस्थों में कई संयमी-साधु जैसे होते हैं। उनमें साधना आई हुई है। जितना त्याग-तपस्या, संयम का क्रम बढ़ता है, धार्मिक साधना में समय लगाता है। सुमंगल साधना स्वीकार करने वाला उच्च कोटि का साधक श्रावक बन सकता है।
गृहस्थ जीवन में कुछ समय सामायिक-स्वाध्याय लगाया जाए तो साधकता प्राप्त हो सकती है। तारतम्य हो सकता है। मनुष्य जन्म का उपयोग हम बढ़िया साधना में करें। पद-प्रतिष्ठा कब तक रहेगी। आगे पर भी हम ध्यान दें, धर्म का पाथेय साथ ले जाएँगे, तो आगे काम आ सकता है। मानव जीवन में हमारा धर्म का टिफिन तैयार होता रहे। हमारी आत्मा की दान पेटिका तो हमें ही भरनी पड़ेगी। रोज थोड़ा-थोड़ा उसमें डालते जाएँ। दानपेटिका भरने का काम करें, यह काम्य है। पूज्यप्रवर के स्वागत में लूणकरणसर के विधायक सुमित गोदारा, तेरापंथ महिला मंडल, लूणकरणसर ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि हमें अच्छा इंसान बनना चाहिए। उसके उपाय हैंµपूज्यप्रवर के अवदानµसद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति।