चारित्रात्माओं के लिए पथदर्शक आगम है दशवेंआलियं: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

चारित्रात्माओं के लिए पथदर्शक आगम है दशवेंआलियं: आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ भवन, सरदारशहर, 13 मई, 2022
संयम साधना के शिखर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि दसवेंआलियं एक ऐसा आगम है, जो चारित्रात्माओं के लिए बहुत शिक्षाप्रद है। पथदर्शक है और नियम की भी जानकारी देने वाला है। अभी मैंने नवदीक्षित साध्वी को छेदोपस्थापनीय चारित्र ग्रहण करवाया। वो दसवेंआलियं आगम के आधार से करवाया। इसके चौथे अध्ययन में पाँच महाव्रतों और छठे रात्रि भोजन विरमण व्रत के त्याग का क्रम आर्ष वाणी में आया है, उसके द्वारा ही मैंने नवदीक्षित साध्वी को प्रत्याख्यान करवाया। साधुचर्या की मौलिक जानकारी दसवेंआलियं से प्राप्त हो सकती है।
दसवेंआलियं के प्रथम श्लोक में तो अतिसूक्ष्म में बताया गया है कि धर्म क्या है? अहिंसा, संयम, तप धर्म है। इसके पाँचवें अध्ययन में गोचरी-भिक्षा-आहार संबंधी चर्या की बात विस्तार में बताई गई है। सातवाँ अध्ययन भाषा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। विनय कैसे रखना, गुरु के प्रति कैसे रखना, विनीत को संपत्ति, अविनीत को विपत्ति मिलती है आदि बातें इसके नौवें अध्ययन में बताई गई हैं। भिक्षु कौन होता है, भिक्षु के क्या लक्षण हैं, यह बात दसवें अध्ययन में बताई गई है। दो चूलिकाएँ भी हैं। प्रथम चूलिका में बताया गया है कि साधु का मन अगर घर जाने का हो जाए, साधुपन छोड़ने का हो जाए तो क्या चिंतन करना चाहिए? अठारह बातें बताई गई हैं। उन पर विचार करें तो गिरता मन संभल सकता है। दूसरी चूलिका में अनुश्रोत की बात बताई गई है।
दसवेंआलियं का तो चारित्रात्माओं को बार-बार स्वाध्याय करते रहना चाहिए। समणियाँ भी निरंतर स्वाध्याय करती रहें। शास्त्रों की सारभूत बात दसवेंआलियं में आई हुई है। आगम हमारे लिए खुराक है। नवदीक्षित साध्वी भी इनका स्वाध्याय करती रहें। इनके चित्त समाधि रहे। जीवन में विकास करना चाहिए। सेवा की भावना रहे। बड़ी दीक्षा से पहले साध्वी नमनप्रभाजी ने अपने सात दिन के संस्मरण बताए। बड़ी दीक्षा के बाद उन्होंने सभी संतों को वंदना की। संतों की ओर से मुनि धर्मरुचिजी ने उनके प्रति मंगलभावना प्रेषित की।

साध्वी गुणमालाजी की स्मृति सभा

पूज्यप्रवर की सन्निधि में साध्वी गुणमाला जी जो 7 मई को 11 मिनट के तिविहार संथारे में प्रयाण कर गई थी की स्मृति सभा का आयोजन किया गया। परम पावन ने उनका परिचय बताया। उनकी स्मृति में चार लोगस्स का ध्यान करवाया। महामनीषी ने उनकी आत्मा की उत्तरोत्तर प्रगति करने हेतु परम लक्ष्य को प्राप्त करे, ऐसी मंगलभावना करते हुए भावांजलि अभिव्यक्त की।
मुख्य मुनिप्रवर एवं मुख्य नियोजिका जी ने भी अपनी मंगलभावना रूप में भावांजलि दी। साध्वी निर्मलयशाजी ने भी भावांजलि व्यक्त की। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मुनि ऋषिकुमार जी व मुनि रत्नेश कुमार जी, साध्वी स्वस्तिकप्रभाजी, साध्वी मलयशाजी, साध्वी सिद्धप्रभाजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। समणी सत्यप्रज्ञा जी, समणी स्वरप्रज्ञा जी, समणी रोहिणीप्रज्ञाजी, समणी मुकुलप्रज्ञाजी ने भी अपनी अभिवंदना श्रीचरणों में व्यक्त की। सरदारशहर के मित्तल परिवार से मित्तल चेरीटीज द्वारा पूज्यप्रवर को अभिनंदन पत्र समर्पित किया गया। अभिनंदन पत्र का वाचन डॉ0 अमित ने किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।