दुःख का ही रूप है चिंता: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दुःख का ही रूप है चिंता: आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ भवन, सरदारशहर, 14 मई, 2022
नंदनवन तेरापंथ के गणमाली आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आगम में एक बात आती है कि भगवान महावीर ने साधुओं से प्रश्न किया कि साधुओ! प्राणियों को किस चीज का भय लगता है। उसका उत्तर देते हुए भगवान ने ही फरमाया कि प्राणियों को भय दुःख से होता है।
प्रश्न है कि दुःख से छुटकारा कैसे मिले? दुःख मुक्ति कैसे मिले? गृहस्थों को बाह्य दुःख होते हैं, तो बाह्य संसाधनों से दुःख दूर करने का प्रयास कर लेते हैं। दुःख के प्रतिकूल व्यवस्था कर ली तो दुःख दूर हो सकता है। भीतर का दुःख बाह्य संसाधनों से दूर नहीं होते, इसलिए दुःख के दो प्रकार हो जाते हैं-आंतरिक दुःख और बाह्य दुःख।
आंतरिक दुःख जो मानसिक, भावनात्मक होता है वह दूर कैसे हो। दो शब्द हैं-सुविधा और शांति। सुविधा से बाह्य दुःख दूर हो सकता है, पर शांति मिलना मुश्किल है। संसाधनों से सुविधा मिल सकती है, साधना से शांति मिल सकती है। दुःख मुक्ति का साधन है-अपने आपका अभिनिग्रह-संयम करो।
अपने आप निग्रह करने के लिए गुस्से को कंट्रोल में रखें तो शांति हो सकती है। अपना संयम, अपना अनुशासन अपने पर है, फिर दूसरा हमें मानसिक रूप में दुःखी नहीं बना सकता। आत्म निग्रह से दुःखमुक्ति हो सकती है। ‘चिंता नहीं, चिंतन करो’। यह सूक्त बड़ा सुंदर है। चिंता दुःख का ही रूप है। चिंतन करें कि किस स्थिति में क्या करें? हर स्थिति में चिंता न करें। आदमी के मन में संतोष है, तो बड़ी शांति रहती है। साधु तो राजा की तरह सुखी होता है। साधु के तो धरती शैय्या है। साधु की भुजा ही सिराणा है। चंद्रमा की चांदनी ही प्रकाश है। साधु तो राजा से भी बड़ा होता है। राजा आदि बडे़-बड़े लोग साधु को प्रणाम करते हैं। साधु देवों के लिए पूजनीय-वंदनीय है। कारण साधु में संयम है, त्याग है। शास्त्रकार ने कहा है कि अपने आपका निग्रह करो। संतोष नहीं है, तो आदमी दुःखी हो सकता है।
स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्त्वावधान में निवासी-प्रवासी युवकों का सम्मेलन पुनरागमन पूज्यवर की सन्निधि व मंगलपाठ से शुरू हुआ। मनीष दफ्तरी ने इस सम्मेलन की जानकारी दी। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में साध्वी वीरप्रभाजी, साध्वी साधनाश्री जी, साध्वी इंदुयशाजी, साध्वी गंभीरप्रभाजी, साध्वी रोहितयशाजी, साध्वी कल्पमालाजी, साध्वी संकल्पश्रीजी, साध्वी भावितप्रभाजी, साध्वी गुप्तिप्रभाजी, साध्वी प्रशांतयशाजी, साध्वी कीर्तिप्रभाजी, साध्वी मयंकप्रभाजी, साध्वी मलययशाजी, साध्वी स्वस्तिकप्रभाजी, साध्वी मीमांसाप्रभाजी, समणी सत्यप्रज्ञा जी, समणी स्वर्णप्रज्ञाजी, समणी रोहिणीप्रज्ञाजी, समणी मुकुलप्रज्ञा जी आदि ने अपनी भावनाएँ व्यक्त की। अभिनंदन नाहटा, निशा सेठिया, सुमन दुगड़, शांति देवी चिंडालिया, नेहा नखत, तेजकरण चोरड़िया आदि ने अपनी अभिवंदना प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमारजी ने बताया कि जो गुरु को छोड़ देता है, वो साधना नहीं कर सकता।