आज धरा खुशहाल

आज धरा खुशहाल

आज धरा खुशहाल गगन यह गाए मंजुल गीत।
अभिनंदन साध्वीप्रमुखा का उत्कंठित है मन का मीत।।

दीक्षा दिन गुरुवर का पावन मंगलमय उपहार मिला।
मनोनयन का वर है सुंदर गण उपवन जो खिला-खिला।
मनहारी वह दृश्य निहारा बन पाए हम परम पुनीत।।

बचपन से आत्मानुशासी गुरुचरणों में सहज समर्पण।
ज्ञान-ध्यान की निर्मल धारा तप का तुम करती हो तर्पण।
शिखरों की है यात्रा प्रतिपल जुड़ी रही अंतर में प्रीत।।

गण की वेदी पर मुखरित हो गणनायक का जो विश्वास।
दीपशिखे! गण की एक-एक साध्वी में भर दें नया उजास।
दो-दो साध्वीप्रमुखाओं से संवलित जीवन पुण्यप्रणीत।।