आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण

हे धवल धर्म ध्वज के धारक
हे शांति अहिंसा व्रत-वाहक
अध्यात्म घोष के पा×चजन्य
तुमसे जननी की कोख धन्य
हे श्रमण सूत्र के महाप्राण
तुम सदाचार के हो प्रमाण
हे तुलसी के तपशील यज्ञ
तुम शुद्धि बुद्धि से महाप्रज्ञ
आचारशील गंभीर धीर
कैवल्यज्ञान के महावीर
अणुव्रत अनुशासित महाश्रमण
भारत के भाषित अलंकरण
द्युतिमान पुंज आधारभूत
तेरापंथी जग के मरुत
वसुधैव शांति के अग्रदूत
हे भारत के सच्चे सपूत

जर्जर पतझर के मौसम को
सुरभित मधुमास बना डाला।
दो कदम चले तो कदमों से
गर्वित इतिहास बना डाला।

वह धर्मवरा उर्वरा धन्य
सरदारशहर की धरा धन्य
जब युवाचार्य मुनि मुदित भए
भावों से घट-घट भरा धन्य
मुद मंगल का अतिरेक हुआ
धरती से अंबर एक हुआ
वैशाख शुक्ल दशमी शुभ दिन
आचार्य पदम अभिषेक हुआ
तन विष विकार विच्छिन्न हुए
अंतर्मन के पथ भिन्न हुए
अंगारों के तपते पथ पर
अंकित पावन पद चिह्न हुए
चैतन्य ज्ञान से दिया अभय
तुमसे ज्योतित है नील निलय
हे संत प्रथा के अधिनायक
हे ज्योतिष्मान तुम्हारी जय

निज आभा से आलोकित कर
नूतन आकाश बना डाला।
दो कदम चले तो कदमों से
गर्वित इतिहास बना डाला।

हे कुरुक्षेत्र के पारायण
तुम दीन-दुखी के नारायण
हे महापज्ञ के रचित ग्रंथ
तुम मोक्ष द्वार के मुदित पंथ
जिन संस्कारों के शिखर स्तूप
साक्षात संत भवंत रूप
ध्रुव संयनिष्ठ प्रतिमान नव्य
तुम भरत भूमि के भाल भव्य
कर लिया बिछौना धरती पर
ऊपर से ओढ लिया अंबर
दुनिया को दर्श रहे बाहर
पर वास किया खुद के भीतर
परमार्थ वृत्ति के क्षीण-मंथन
करुणा कानन के सुरभि सुमन
इस धरती के अनमोल रतन
तब चरणों में शत कोटि नमन।

शुचि शुभ्र चदरिया धारणकर
जीवन संन्यास बना डाला।
दो कदम चले तो कदमों से
गर्वित इतिहास बना डाला।

हिंसा का आश्रय धर्म नहीं
मानव ने जाना मर्म नहीं
हे पंच महाव्रतवीर पथिक
भव-भोग श्रमण का कर्म नहीं
इस दिव्य वृत्ति का गान सुनो
जैनागम मर्म महान सुनो
श्री महाश्रमण विदु-वाणी में
मानव का धर्म-विधान सुनो
मृदुवाणी अमृत घोल रही
प्रज्ञा मानो मुख बोल रही
मन वीणा को झंकृत करने
अवचेतन के पट खोल रही
है प्राण तत्त्व साकार यही
मानस जीवन आधार यही
स्थितप्रज्ञ विदेह तपस्वी जो
कलि में ईश्वर अवतार यही।

सद्गुरु चरण के चंदन से
निज मस्तक खास बना डाला।
दो कदम चले तो कदमों से
गर्वित इतिहास बना डाला।