करिश्माई व्यक्तित्व के नायक - आचार्यश्री महाश्रमण

करिश्माई व्यक्तित्व के नायक - आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण जी को युगप्रधान के उपलक्ष्य में विशेष

संस्कृत साहित्य में वर्णन आता है-
तुंगत्वमितरा नाद्रौ, नेदं सिन्धावगाधता।
अलंधनीयता हेतो, रुभयं तन्मनस्विनि।।
कहा गया है कि पर्वत में ऊँचाई होती है पर गहराई नहीं होती। इसके विपरीत समुद्र में गहराई होती है पर ऊँचाई वहाँ नहीं होती। जीवन के निर्माण में ऊँचाई और गहराई की संयुति अपेक्षित होती है। इस अपेक्षा को मूर्तिमान होते देखना हो तो वे मनस्वी महापुरुषों में देखी जा सकती है। महान व्यक्तियों का जीवन इसी युगल का संगमस्थल होता है। महर्षि महायोगी तेरापंथ धर्मसंघ े एकादशम अधिशास्ता पूज्यश्री महाश्रमण के जीवन में दोनों विशेषताएँ खास-उच्छ्वास की तरह लयलीन हैं।
रत्नगर्भा वसुंधरा सरदारशहर। जहाँ पर रहता था झूमरमल जी दुगड़ का परिवार। उनकी गृहलक्ष्मी नेमांबाई की कुक्षि से जन्मा मोहनकुमार। मोहन किस्मत का धनी था। कुछ लोग सफलता के भव्य प्रासाद में एक-एक पायदान पार करके पहुँचते हैं तो कोई-कोई लिफ्ट से सीधा ही पहुँच जाता है। मोहन के सौभाग्य ने छलाँग लगाई औश्र मोहन से मुनि मुदित फिर महाश्रमण मुदित फिर युवाचार्य महाश्रमण और एक अति शुभ वेला में तेरापंथ के आचार्य महाश्रमण का ताज पहन लिया।
आचार्यश्री महाश्रमण ऋजुप्राज्ञ, मित-मधुरभाषी, करुणावान और पुरुषार्थ के प्रखर पुजारी हैं। अटूट संकल्प शक्ति और फौलादी निर्णय लेना आपकी नियति है। मितभाषण तो आपकी खास पहचान है। अर्हतवाणी को आत्मसात करने-करवाने में हर पल व्यस्त रहते हैं। आपश्री को लोग इस युग के भगवान के रूप में देखते हैं। आपने एक-एक साँस पर जागरूकता के प्रहरी बैठा रखे। ‘समयं गोयम मा पमायए’ साधना के इस मूल मंत्र को कभी भी निद्राधीन होने नहीं देते। कहा भी है-

रात सुबह का इंतजार नहीं करती, खुशबू मौसम का इंतजार नहीं करती,
समय अमूल्य है, इसे व्यर्थ मत गँवाओ,क्योंकि-जिंदगी वक्त का इंतजार नहीं करती।।

सुदूर प्रदेशों की पदयात्रा करना आपका नैसर्गिक रुझान है। आप महान यायावर हैं। अहिंसा यात्रा के माध्यम से आपने दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, नागालैंड, असम, मेघालय, झारखंड, ओडिसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और राजस्थान- भारत के इन बीस राज्यों तथा नेपाल-भूटान आदि विदेशों की यात्रा करके जैन धर्म को जनधर्म का जामा पहनाने का सघन प्रयत्न किया। जो इतिहास का दुर्लभ अध्याय बन गया। 1800 किलोमीटर की धरती को अपनी चरणरज से पावन करने वाले आचार्य महाश्रमणजी विविध विशेषताओं के तीर्थ हैं।
पूज्यप्रवर के कार्यक्रमों में इंद्रधनुषी रंग हैं। प्रवचन में गुलाब सी महक है। संगीत में रजनीगंधा की भीनी-भीनी सुवास है और नेतृत्व में नगरबेल की तरह कीर्ति और करुणा प्रसारित होती रहती है। आपका दीर्घकालिक संयम का सफरनामा रोमांचक और रोचक संस्मरणों की अटैची है तो आचार्य काल का द्वादश वर्षीय कार्यकाल कीर्तिमानों की बैंक है। उनमें से कुछेक प्रसंग अद्भुत, ऐतिहासिक और अद्वितीय हैं। आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ की जन्मशती के संदर्भ में सौ दीक्षाएँ, दोनों विभूतियों के साहित्य का शताधिक पुस्तकों के रूप में संयोजन, संपादन, काठमांडू के प्राणघातक भूकंप में अडोल-अकंप रहना, पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों को कोविड के भयावह भूचाल में भी यथावत रखना। प्रलयंकारी महामारी में पूरी धवल सेना की सुरक्षा, मुख्यमुनि, साध्वीवर्या जैसे कल्पनातीत पदों का सृजन, नक्सलियों, आतंकवादियों मनुष्यों को अहिंसा की दीक्षा देना आदि-आदि। नित्य नवीन सदाबहार अवदानों की शंृखला द्रौपदी के चीर की तरह विस्तृत है जिसका उल्लेख छोटे से आलेख में संभव नहीं। कालजयी करिश्माई व्यक्तित्व के नायक आचार्यप्रवर को युगप्रधान आचार्य के सम्मान अलंकरण से अलंकृत कर पूरा धर्मसंघ ही नहीं पूरी मानव जाति प्रफुल्लित है। प्रसन्न है। भाव-विभोर है। आप अलौकिक शक्तिपुंज हैं। इसलिए कहा है-

गम को उल्लास में बदल देते हैं, बहम को विश्वास में बदल देते हैं।
मात्र मोहक मुस्कान बाँटकर मेरे गुरु, तम को प्रकाश में बदल देते हैं।।

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण की वरदायी अनुशासना का वंदन, अभिनंदन।