मुक्तक

मुक्तक

साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी का अभिनदन
झूम रहा मन का वृंदावन
खूब बधाएं मंगल गाएं
हर्षित पुलकित धरागगन

महाप्रज्ञ की हो अनुपमेय कृति
अध्यात्म की हो तुम प्रतिमूर्ति
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी
स्वीकारो श्रद्धाभक्तिमय प्रणति

वर्धापना में गूंज रहें है शंख
मेरी खुशियों की लगे हैं लाखों पंख
साध्वीप्रमुखाश्री जी का मनोनयन
जागी अंतर्मन में नई उमंग

आज का यह सुनहरा अवसर
बह रहा है भक्ति का निर्झर
तेरे हर ईशारे पर
मैं रहूं सदा ही तत्पर