दोहे

दोहे

साध्वी प्रमुखा का सुना, मनोनयन सुखकार।
महाश्रमण गुरुदेव की, महिमा अपरंपार।।

विश्रुत विभाजी बन गई, सतियों की शिरमोड़।
नवमी प्रमुखा जी बनी, उदित हुई नव भोर।।

तेरापंथ समाज की, दिग् दिगन्त में ख्यात।
समय-समय पर हैं मिले, योग्य श्रेष्ठ गणनाथ।।

गुरु की करुणा दृष्टि से, सफल सकल नित काज।
महाश्रमण युग-युग तपो, अंतर मन आवाज।।

दीक्षा दिन पर रच दिया, गुरुवर ने इतिहास।
रोम-रोम पुलकित हुए, सबमें नव उल्लास।।