भगवान ऋषभ विश्व संस्कृति के आदि पुरुष थे

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भगवान ऋषभ विश्व संस्कृति के आदि पुरुष थे

बोरावड़।
भगवन ऋषभदेव विश्व संस्कृति के आदि पुरुष थे। उन्हें भारतीय परंपरा के ही नहीं बल्कि मानव संस्कृति के आद्य निर्माता के रूप में माना जा सकता है। वे एक पहले पुरुष थे जिन्होंने भोग भूमि के मानवों को कर्म भूमि में जीने लायक बनाया। ये विचार अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव के अंतर्गत मुनि चैतन्य कुमार ‘अमन’ ने कहे।
मुनिश्री ने आगे कहा कि भगवान ऋषभ की तपस्या का अनुसरण करते हुए आज अनेक लोग वर्षीतप करते हैं। यथापि तपस्या करना आसान नहीं होता। उसमें एक वर्ष तक एक दिन उपवास व एक पारणा करना बहुत कठिन है। जिसका मनोबल, संकल्पबल, संयम बल, आत्मबल मजबूत होता है वे ही इस प्रकार तपस्या करके जन्मों के कर्मों को काटकर सिद्धालय की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
मुनि सुबोध कुमार जी ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए भगवान महावीर एवं तपस्या के बारे में बहुत कुछ प्रेरणाएँ दी। इस अवसर पर मुनि चैतन्य कुमार ‘अमन’ ने वर्षीतप करने वाले भाई-बहनों से ईक्षुरस ग्रहण किया, जिससे तपस्वियों ने अपने प्रति कृतार्थता की अनुभूति की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि तहसीलदार दिनेश चंद्र शर्मा, पूर्व विधायक भंवरलाल राजपुरोहित, पूर्व प्रधान हिम्मत सिंह राजपुरोहित, नगर परिषद, चेयरमैन भंवरलाल मेघवाल, दिलीप सिंह चौहान, प्रेम सिंह पटेल, आदि तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष गजेंद्र बोथरा एवं साथी कार्यकर्ताओं द्वारा स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। तपस्वी अमरचंद बोथरा के सातवें वर्षीतप, निर्मला देवी बोथरा के दूसरे वर्षीतप तथा विजयादेवी बाफना के पाँचवें एकाशन वर्षीतप पर तेयुप द्वारा स्मृति चिह्न प्रदान कर सम्मान किया गया। इस अवसर पर अनेक भाई-बहनों ने तप-अनुमोदना में अपने विचार गीत-नाटिका आदि प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में तेयुप मंत्री विकास चोरड़िया, आगंतुक महानुभावों का आभार ज्ञापन करते हुए विचार व्यक्त किए। तपस्वी भाई अमरचंद बोथरा ने आगामी आठवें वर्षीतप का प्रत्याख्यान किया।