षष्टीपूर्ति एवं युगप्रधान अभिषेकोत्सव के अवसर पर

षष्टीपूर्ति एवं युगप्रधान अभिषेकोत्सव के अवसर पर

मंगल-भावार्पण
शत-शत-वर्धापना।
ओ युगाधार! युग पथ दर्शक! युग की आस्था के अमर धाम।
ओ युगप्रधान! युग संपोषक! लो कोटि कोटि युग का प्रणाम।।

जब-जब होता है मानवीय मूल्यों का क्षरण और नैतिकता रूपी द्रौपदी का स्वार्थ रूपी दुर्योधन करता है चीर हरण। तब-तब इस धरती पर होता है किसी-न-किसी महामानव का अवतरण। बनता है उन्हीं में से कोई तुलसी, कोई महाप्रज्ञ तो कोई महाश्रमण। तभी तो सार्थक होता है उनके लिए युगप्रधान जैसा गरिमामय अलंकरण। जिनके बदलते आयामों के साथ बदलता है जीवन-मूल्यों का संस्करण। होता है चिंतन का परिष्करण। अथवा एक नए युग की दिशा में अभिनिष्क्रमण। तन भले हो मानव का पर मन का हो गया अध्यात्म के उच्च शिखर पर उत्क्रमण। करुणा के उसी कल्पवृक्ष का एक देदीप्यमान नाम है-आचार्य महाश्रमण। जिसमें युगीन समस्याओं का समाधान देने व युगीन आयामों से युगधारा बदलने की क्षमता होती है। वही धर्मनेता बन सकता है, युगप्रणेता, युगवेत्ता और सच्चा युग प्रचेता।
हे युगधारा के संवाहक!
आपश्री ने न केवल अहिंसा यात्रा द्वारा हजारों कि0मी0 पाँव-पाँव चलकर भूमितल की दूरियों को नापा है, अपितु मानव मन के गलियारों में व्याप्त बुराइयों के तमस को दूर कर नैतिकता, सद्भावना तथा नशामुक्ति के संदेशों से जिस तरह युग चेतना को आलोकित किया है, वस्तुतः लोक-कल्याण के लिए ऐसा श्रम करने वाले विरल महापुरुषों से ही यह सृष्टि समलंकृत होती है। हे युग चिंतक! युगप्रवर्तक! युगद्रष्टा! युगस्रष्टा!
आप जैसे प्रखर प्रतापी, विश्वव्यापी, महिमातिशायी, पुण्यश्लोक प्रभास्वर आभामंडल, विलक्षण प्रतिभा, बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी युगांतकारी महानायक का ऊर्जस्वल नेतृत्व पाकर भैक्षव शासन, जिनशासन ही नहीं संपूर्ण भारतीय अध्यात्म संस्कृति गौरवान्वित हुई है।
हे ऋजुता के रक्ताम रवि! मृदुता के मानसरोवर।
आपश्री ने युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ की प्रज्ञा को न केवल आत्मसात किया है उस बोधामृत को जन-जन तक बाँटकर मानवता के भाग्याकाश में सृजन के नए क्षितिज उद्घाटित किए हैं। नैतिक क्रांति के पुरोधा! चट्टानी संकलप एवं अदम्य साहस से भरी तुम्हारे पुरुषार्थ की यह यशोगाथा समय के भाल पर जागृति की जीवंत प्रेरणा बनकर असंख्य काल तक स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगी। 30 जनवरी तदनुसार माघ शुक्ला त्रयोदशी को महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने अपने अमृत महोत्सव की भव्य आयोजन बेला में आपश्री के उसी उज्ज्वल कर्तृत्व के मूल्यांकन हेतु चतुर्विध धर्मसंघ की भावना का सशक्त प्रतिनिधित्व करते हुए आचार्यश्री महाश्रमण जी को युगप्रधान आचार्यों की तेजस्वी परंपरा में विन्यस्त कर जो महान कार्य किया है दुनिया सदियों तक उस पर नाज करेगी। काश! आज उनकी महनीय उपस्थिति में यह विराट गरिमामय कार्यक्रम मनाया जाता तो इस नजारे का रंग कुछ ओर ही होता। खैर! अब दिव्यलोक से ही उस दिव्यात्मा शासनमाता की दिव्याशीषें धर्मपुत्र आचार्य को वर्धापित कर रही है। प्रभो! संप्रति हमारा मन पाखी क्षेत्रीय दूरियों को अतिक्रांत कर श्री सन्निधि की निकटता का अनुभव करता हुआ युगप्रधान अभिषेकोत्सव एवं षष्टीपूर्ति समारोह की मंगल बेला में शत-शत श्रद्धासिक्त वंदना के साथ अपने आराध्य परमपूज्य आचार्यप्रवर को ढेरों बधाइयाँ समर्पित कर रहा है। आप शतायु हों, दीर्घायु हों इसी मंगलभावना के साथ-

तुम्हारी कीर्ति की गाथा, प्रभो युग कल्प गाएँगे।
करोड़ों कर्म के उत्सव, मगन मन हम मनाएँगे।।