आचार्यश्री महाश्रमण जी को युगप्रधान के उपलक्ष्य में विशेष

आचार्यश्री महाश्रमण जी को युगप्रधान के उपलक्ष्य में विशेष

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

प्रो. धर्मचंद जैन, भीलवाड़ा
आचार्यश्री महाश्रमण, तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता या आचार्य हैं। उन्हें युवा मनीषी, महातपस्वी, शांतिदूत व उदारता के पर्याय एवं कीर्तिमान महापुरुष के नाम से जाना जाता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में भी विख्यात हैं। आचार्य महाश्रमण जी को युगप्रधान अलंकरण से भी विभूषित किया गया है। युगप्रधान व्यक्तित्व वही हो सकता है, जो सद्गुणों से युक्त हो, ज्ञानवान हो, करिश्माई और आदर्श नेतृत्व वाला हो, जिसके अनुयायियों में उसके प्रति श्रद्धा की भावना हो, ऐसे व्यक्तित्व की कथनी व करनी में अंतर नहीं हो और जिसने जनजीवन का निकट से साक्षात्कार करके उसे दुर्व्यसनों से दूर रहने का एक भगीरथ आंदोलन चलाकर उसमें सफलता प्राप्त की हो। युगप्रधान वही व्यक्ति हो सकता है, जिसमें धर्म, विज्ञान, अध्यात्म और राष्ट्रवाद का अपूर्व समन्वय हो, ऐसा व्यक्तित्व अपने कर्तृत्व से अहिंसक समाज संरचना का सूत्रधार हो। वर्तमान आचार्य महाश्रमण में उपर्युक्त सभी गुणों का समावेश हुआ है। अतः उन्हें युगप्रधान अलंकरण से विभूषित करना सर्वथा उपर्युक्त सामयिक एवं प्रासंगिक है।
युगप्रधान आचार्य महाश्रमण अनेक अनूठी विशेषताओं को संजोए हुए हैं। तेरापंथ धर्मसंघ के पहले आचार्य हैं, जिनकी दीक्षा किसी आचार्य द्वारा नहीं हुई। आपका दीक्षा लेने से पूर्व का नाम मोहन था। आपकी जन्मभूमि सरदारशहर में मुनिश्री सुमेरमल जी ‘लाडनूं’ द्वारा दीक्षा हुई। बाद में मोहन को मुनि मुदित के रूप में जाना जाने लगा। आचार्य तुलसी इनकी प्रतिभा के कायल थे और उन्होंने संत मुदित को ‘महाश्रमण अलंकरण’ प्रदान किया, बाद में आचार्य महाप्रज्ञ ने उन्हें युवाचार्य पद प्रदान करते हुए युवाचार्य महाश्रमण का ही संबोधन प्रदान किया।
सरदारशहर में ही आचार्य महाप्रज्ञ के देवलोकगमन के बाद युवाचार्य महाश्रमण स्वतः स्वभाविक रूप से तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हो गए। इस तरह से आचार्य महाश्रमण को आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ की अनुपम कृति होने का भी गौरव प्राप्त होने के साथ-साथ इन दोनों आचार्यों की गौरवशाली विरासत भी प्राप्त हुई। आचार्य महाश्रमण बनने से पूर्व अपनी अटूट श्रद्धा व समर्पण से विभिन्न स्थितियों का सफर तय करके इस प्रतिष्ठित पद को प्राप्त किया है। मोहन से मुदित, मुदित से महाश्रमण, महाश्रमण से युवाचार्य महाश्रमण और युवाचार्य महाश्रमण से आचार्य महाश्रमण बनने तक की यह यात्रा केवल तेरापंथ धर्मसंघ की ही नहीं, अपितु जैन धर्म का एक गौरवशाली अध्याय है।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण आगमों, जैन दर्शन और तुलनात्मक धर्म के निष्णात और आधिकारिक विद्वान है। आपके नेतृत्व में वर्तमान में भी आगम संपादन का कार्यक्रम अनवरत चल रहा है। अपने दो महान गुरुओं-आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ के ग्रंथों का पारायण करके इनके वाङ्मय का भी संपादन कराया है।
जैन विश्व भारती मान्य संस्थान लाडनूं अर्थात् मान्य विश्वविद्यालय विश्व का पहला जैन विश्व विद्यालय है। यह संस्थान जैन विद्या तुलनात्मक धर्मों, प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान और अहिंसा प्रशिक्षण का विश्वव्यापी केंद्र बन गया है। आचार्य महाश्रमण इस विश्वविद्यालय के ‘अनुशास्ता’ के रूप में सर्वोच्च अधिकारी है। आपके नेतृत्व एवं निर्देशन में यह विश्वविद्यालय प्रगति के नए सोपान तय कर रहा है।
आचार्य महाश्रमण अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं। आप प्राकृत, संस्कृत, हिंदी पर अच्छा अधिकार रखते हैं। साथ ही आप तेरापंथ के पहले ऐसे आचार्य हैं, जिनका अंग्रेजी पर भी अच्छा अधिकार है। आचार्य महाश्रमण कुशल प्रवचनकार हैं। आप अपने प्रवचनों में आगम वाणी, भिक्षु दर्शन, तेरापंथ दर्शन और पूर्ववर्ती आचार्यों के विचार दर्शन के साथ-साथ सामयिक विषयों पर भी व्याख्यान देते हैं। आपका कंठ भी मधुर है और व्याख्यान के बीच गीतिकाएँ गाकर जनसाधारण को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। आप ऐसे जैन आचार्य हैं, जिन्होंने साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा का लाडनूं में अमृत महोत्सव मनाया। बाद में बीदासर में पुनः ‘शासनमाता’ के अलंकरण से अलंकृत करके उन्हें असाधारण सम्मान प्रदान किया। जब वे दिल्ली में अस्वस्थ हुई तो एक दिन में 47 किलोमीटर की पदयात्राएँ करके उन्हें दर्शन दिए, इसके बाद साध्वीप्रमुखा ने संथारा करके अपनी जीवन लीला को समाप्त किया। आप नारी सशक्तिकरण के पर्याय हैं। आपने दिल्ली के ऐतिहासिक लालकिले से अपनी अहिंसा यात्रा प्रारंभ की, जो 23 राज्यों से गुजरती हुई, जनसाधारण को नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति का संदेश और संकल्प प्रदान करती हुई लोककल्याण की प्रेरक बनी। आचार्य महाश्रमण ने असम, मेघालय और नागालैंड जेसे उत्तरी-पूर्वी राज्यों की यात्रा करके एक नया कीर्तिमान स्थापित किया, इस यात्रा का आपने दिल्ली में ही समापन किया। आप पहले जैन आचार्य हैं जिन्होंने नेपाल के शहर विराटनगर में चातुर्मास किया। आपने भूटान जैसे राष्ट्र की भी पदयात्रा करके सबको चमत्कृत कर दिया। अपनी इस अहिंसा यात्रा में आपने विदेशी राष्ट्राध्यक्षों, उनके प्रतिनिधियों के साथ-साथ देश के मूर्धन्य राजनेताओं को भी आशीर्वाद व मार्गदर्शन प्रदान किया।
आप आधुनिक तकनीक को भी धर्म के प्रचार के लिए आवश्यक मानते हैं। आपकी प्रेरणा से ही 8 मई, 2022 को सरदारशहर में आचार्य महाप्रज्ञ की समाधि स्थल पर अत्याधुनिक तकनीकी से लेस आचार्य महाप्रज्ञ म्यूजियम का लोकार्पण हुआ।
ऐसे अटल संकल्प शक्ति के धनी, अद्भुत संगठनकर्ता और अनुशासन के जीवंत-पर्याय, युगप्रधान आचार्य महाश्रमण को शत-शत वंदन है।