साध्वी कमलप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार

साध्वी कमलप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार

मंगलकामना

कमल बैद 

कहाँ गई हो प्यारी बहना क्यों भूलीं छोटे भाई को
मन कितना है भारी भारी कैसे पाटू इस खाई को
क्यों भूल गई बचपन की यादें हरपल तुम्हें सताई जो
दीक्षा लेने तैयार हुई करता था खूब बड़ाई जो।

कुशल सुंदर कुल की लाडली दो बहनें व दस हैं भाई
दीक्षा लेकर जन्म सुधारो बहना कुल की रीति सदाई
उदयापुर तेरी दीक्षा में विदाई गीतिका गाई जो
गुरु तुलसी ने याद किया दीक्षा में पुन: सुनाई जो।

मानव जीवन बस माया है जाना पर्वत राई को
तुलसी कर से दीक्षा लेकर चली साथ परछाईं जो
महाप्रज्ञ की छत्र छाँव में पहचानी सच्चाई जो
महाश्रमण की द‍ृष्टि अद्भुत अनुपम करुणा पाई जो
पूर्ण करी सयम की षष्टी स्वीकार करो बधाई को
कोतवाल चम्पक मुनि भगिनि इंदूरू जी की नणदल बाई
रजत रेखा जी की भुवासा चढ़ी शिखर छूली ऊँचाई
पंद्रह थे न्यातिले गण में सती सोलहवीं कमला बाई
अंतिम अनशन कलश चढायो वाह-वाह कितनी ख्याति पाई।

संघ में तुमने कार्य किया कोन करे भर पाई को
संग तुम्हारे सदा रहेगी बहना पुण्य कमाई जो
बढ़ती रहना प्रगति पथ पर तुमने ज्योति जलाई जो
शासनश्री कमल प्रभा कैसे भूलें भलाई को
अंतिम दर्शन नहीं कर पाया माफ करो इस भाई को।