संत परंपरा के आदर्श: आचार्यश्री महाश्रमण

संत परंपरा के आदर्श: आचार्यश्री महाश्रमण

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण भारतीय संत परंपरा के आदर्श पुरुष हैं। समता, मैत्री, करुणा, परोपकार, सहनशीलता व विनम्रता जैसे गुणों के वे समवाय हैं। दर्शन, न्याय, तत्त्वज्ञान, आगम आदि के पारगामी हैं। सहज, शांत, निर्मल पद्म सरोवर जैसा उनका व्यक्तित्व ज्ञान एवं गुण कमलों की सौम्य गंध से महकता हुआ प्रतीत हो रहा है।
एवं हवइ बहुस्सुए
उत्तराध्ययन आगम के ग्यारहवें अध्ययन में बहुश्रुत की सोलह विशेषताएं काव्यात्मक शैली में निरुपित की गई हैं। ‘बहुश्रुत’ शब्द केवल ज्ञान का वाचक नहीं है। इसमें श्रुतघर पुरुष के व्यक्तित्व की नाना विशेषताएं समाहित हैं। आगम निर्दिष्ट एवं हवइ बहुस्सुए के मूर्त्त रूप है परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी। भारतीय संस्कृति में जीवन में सोलह संस्कार, शीलवती नारी के सोलह श्रृंगार, चंद्रमा की सोलह कलाएं आदि का विशेष उल्लेख आता है। आचार्यश्री महाश्रमण का जीवन भी बहुश्रुत की सोलह विशेषताओं के संगम है।
निर्मलता
आचार्यश्री महाश्रमणजी का व्यक्तित्व पारदर्शी है। शंख स्वयं उज्ज्वल होता है और दूध भी। शंख में निहित दूध की भांति बहुश्रुत में धर्म, कीर्ति और श्रुत सुशोभित होते हैं। आचार्यश्री महाश्रमण में भी धर्म, कीर्ति और श्रुत शंख में निहित दूध की भांति शोभायमान है।
जागरूकता
प्रशिक्षित अश्व न तोपों की ध्वनि से डरता है और नहीं खड़खड़ाहट सुनकर भागता है। कंबोज का घोड़ा चाबुक के प्रहार के बिना ही तीव्र वेग से अभीष्ट की दिशा में दौड़ता है, वैसे ही बहुश्रुत पुरुष सतत जागरूक लक्ष्य की ओर प्रवृत रहता है। आचार्यश्री महाश्रमण भी निरंतर जागरूकता से गण-संचालन करते हुए साधना में निरत है।
शौर्य
वीर यौद्धा विपरीत परिस्थितियों से आहत हुए बिना डटा रहता है। वैसे ही बहुश्रुत उभयतः नंदी घोष से अजेय होता है। भीषण गर्मी में सुदूर कच्छ प्रदेश की यात्रा हो या काजीरंगा के अभयारण्य व नागालेंड की दुर्गम यात्रा, काठमांडों का भूकंप हो या कोरोना की वैश्विक आपदा- आचार्यश्री महाश्रमण की यात्रा बिना डरे, बिना घबराए अविराम गतिमान है। हर कठिन परिस्थिति में भी अविचल रहकर गतिमान रहना उनके शौर्य की निशानी है।
अप्रतिहत
बहुश्रुत को हाथी की भांति बलवान एवं अप्रतिहत कहा गया है। साठ वर्षीय हाथी पूर्ण बलवान होता है। बहुश्रुत भी अपने ज्ञान के कारण पराजित नहीं होता। आचार्य महाश्रमण के अप्रतिहत सामर्थ्य का ही प्रभाव है कि उनके उपपात में आने वाला स्वतः उनका हो जाता है। अल्प परिचित या अपरिचित व्यक्ति भी उनके चरणों में नत हो जाता है।
निर्वाह कुशल
बहुश्रुत युगाधिपति वृषभ की भांति भार बहन करने में दक्ष होता है। आचार्यश्री महाश्रमण भी विशाल तेरापंथ धर्मसंघ के गुरुत्तर भार का कुशलता पूर्वक निर्वाह कर रहे हैं। समूचे जैन समाज द्वारा उन्हें जो आदर व सम्मान मिल रहा है, वह उनके कौशल की फलश्रुति है।
दुष्प्रधर्ष
बहुश्रुत सिंह की भांति अनाक्रमणीय होते हैं। अन्य मतावलम्बी उन पर वैचारिक आक्रमण नहीं कर पाते। आचार्यश्री महाश्रमण अपने विलक्षण गुणों के कारण
दुष्प्रधर्षणीय है। सन् 2014 में दिल्ली में सामुहिक क्षमापना के अवसर पर क्रांतिकारी संत तरुणसागरजी के उद्गार वस्तुतः मननीय है। उन्होंने आचार्यां एवं संत समुदाय के समक्ष स्पष्ट कहा कि हम तो सब श्रमण है, महाश्रमण तो आप एक ही हैं।
अपराजेय
शंख, चक्र और गदा को धारण करने वाले वासुदेव अपराजेय होते हैं। वे अपनी अपरिमित शक्ति के कारण तीन खंड के एक छत्र स्वामी होते हैं। आचार्यश्री महाश्रमण अपने श्रद्धाबल, धृतिबल एवं आचारबल के कारण सर्वत्र सम्मान्य है अपराजेय है।
ऋद्धिसंपन्न
षट्खंडाधिपति चक्रवर्ती नाना ऋद्धियों से सुशोभित होते हैं। अष्टगणिसंपदा के स्वामी आचार्य महाश्रमण अध्यात्म ऋद्धियों से संपन्न है। उनकी वचन सिद्धि के अनेक उदाहरण योगज विभूतियों के स्वयंभू उदाहरण हैं।
दिव्य शक्तिधर
बहुश्रुत इन्द्र की भांति दिव्य शक्तियों से संपन्न होते हैं। जैसे सुखृंद के मध्य इंड सुशोभायमान होते हैं। आचार्य भी शिष्य परिवार के मध्य सुशोभित होते हैंे। आचार्यश्री महाश्रमण भी दिव्य शक्तियों एवं दिव्य आभामंडल के कारण शिष्य समुदाय के मध्य दीपित हो रहे हैं।
तेजस्वी
सूर्य अपने तेज से जगत के अंधकार को हरता है। उसका तेजोदीप्त आभावलय संसार में नई ऊर्जा व नई चेतना का संचार करता है। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण अपने तपस्तेज से जगत के पाप, ताप और संताप का हरण कर अध्यात्म की राह दिखाते हैं।
सहज सौम्य
नक्षत्रगण से परिवेष्टित चंद्रमा अपनी सोलह फलाओं से नभोमंडल की शोभा वृद्धिगत करता है। सर्वकला युक्त पूर्ण चंद्र की भांति आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी सौम्यता से संसार में शीतलता भर रहे हैं।
श्रुतसंपन्न
सामुदायिक अन्नभंडार में नाना प्रकार के अनाज सुरक्षित होते हैं। उसी प्रकार बहुश्रुत भी कोष्ठागार की भांति श्रुत से परिपूर्ण होते है। आचार्यश्री महाश्रमण का बाहुश्रुत्य सबको विस्मित करने वाला है।
आदर्श
बहुश्रुत जंबू वृक्ष की भांति सब साधुओं में श्रेष्ठ होता है। जंबू वृक्ष के फल की भांति उनका ज्ञान संजीवनी का काम करता है। आचार्यश्री महाश्रमण भी संत समुदाय के लिए आदर्श हैं।
ज्ञान की निर्मलता
नदियों में सीता नदी को श्रेष्ठ माना जाता है। निर्मल जल युक्त विशाल सीता नदी की भांति आचार्यश्री महाश्रमण निर्मल ज्ञान से युक्त हैं। उनके अनाविल ज्ञान की पवित्र धाराएं पार्श्व में आनेवाले को भी पवित्र बनाती हैं।
अडोल और दीप्तिमान
बहुश्रुत को एक उपमा मेरु पर्वत की दी गई है। बहुश्रुत मंदर गिरि की भांति ज्ञान में अत्यंत स्थिर और ज्ञान के प्रकाश से दीप्त होते हैं। आचार्यश्री महाश्रमणजी का व्यक्तित्व भी ज्ञान के अतिशय से दीप्त हैं।
अक्षयकोष
स्वयंभूरमण समुद्र अक्षय जल युक्त व नाना रत्नों से परिपूर्ण है। आचार्यश्री महाश्रमणजी भी अक्षय ज्ञान व शक्ति से संपन्न हैं। आगम सम्मत बहुश्रुत की इन उपमाओं से उपमित आचार्यश्री महाश्रमण के षष्टिपूर्ति के अवसर पर यही मंगल कामना करती हूं कि वे दीर्घ काल तक विश्व क्षितिज को अपने व्यक्तित्व एवं कर्त्तृत्व की आभा से आलोकित करते रहें। जन्म दिवस पर श्रद्धासिक्त भावों सह भावप्रणति।