गुस्सा विकास में बाधक बन सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गुस्सा विकास में बाधक बन सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

सरदारशहर, 29 अप्रैल, 2022
चतुर्दशी हाजरी का दिन। मर्यादाओं का वाचन। मर्यादा पुरुषोत्तम तेरापंथ के राम आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे भीतर वृत्तियाँ विद्यमान हैं। दुर्वृत्तियाँ भी हैं और सद्-वृत्तियाँ भी होती हैं। दुर्वृत्तियों में गुस्सा एक है, जिसके कारण आदमी दुःख पाता है, अपना अहित कर लेता है। गुस्सा मनुष्यों का शत्रु होता है।
आलस्य एक ऐसा तत्त्व है, जो महाशत्रु होता है। गुस्सा भी एक शत्रु है, जो बाहर प्रकट होता है और आदमी का नुकसान भी कर देता है। शरीर पर भी गुस्से से दुष्प्रभाव पड़ सकता है। गुस्सा विकास में बाधा बन सकता है। संत वह होता है, जो शांत होता है। साधु को गुस्सा नहीं करना चाहिए। क्षमा भाव रखना चाहिए। यह पूज्य मघवागणी के सरदारशहर के जीवन प्रसंग से समझाया कि गाली देने से गुमड़े नहीं होते हैं।
समता हमारा धर्म है। साधु समुह में रहते हुए भी शांत रहें। कम खाओ स्वस्थ रहो। गम खाओ, मस्त रहो। नम जाओ, प्रशस्त रहो। थोड़े जीवन काल में भी आदमी बड़ा काम करने वाला बन सकता है। स्थितियों में आदमी धैर्य रखे, शांति न खोए। हिम्मत भी हो, साहस भी हो और भीतर में शांति भी हो।
हमारी साधना बढ़े कि झटपट गुस्से में नहीं आना चाहिए। कहने की बात कही जा सकती है, पर गुस्से में कहना जरूरी नहीं। अकबर-बीरबल के प्रसंग से यह समझाया कि शांति से कही बात आदमी स्वीकार भी करता है। प्रेम से जो काम करा सकते हो, उसके लिए गुस्सा क्यों करें।
साधु हो या गृहस्थ गुस्सा किसी के काम का नहीं है। परिवार में भी शांति रखें। मुँह में सुगर फैक्ट्री व दिमाग में आइस फैक्ट्री रखो। मिठास और दिमाग ठंडा रहे। हम कषाय विजय की साधना का प्रयास यथोचित करते रहें, यह कामना है।
आज चतुर्दशी है। पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन किया। तेरापंथ के सिद्धांत-मर्यादाएँ समझाई। साधु-साध्वियों ने खड़े होकर लेखपत्र का वाचन किया। नवदीक्षित साध्वियों ने भी लेख-पत्र का वाचन किया। पूज्यप्रवर ने उन्हें तीन-तीन कल्याणक बख्शीश करवाए।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि संसारी आत्मा को सीधा परमात्मा नहीं बनाया जा सकता। स्वयं को श्रम-पुरुषार्थ, कर्तृत्व करना होगा। संसारी आत्मा जब शुद्ध स्वरूप में आ जाती है, तब आत्मा परमात्मा बन जाती है। संसारी आत्मा बंद कमरे के समान है और परमात्मा खुला आसमान है। सद्गुरु की शरण मिले तो आत्मा परमात्मा बन सकती है। हमें ऐसे सुगुरु प्राप्त हैं। कर्म का शोधन करने के लिए स्वाध्याय करें, ध्यान करें। षट् जीव निकाय के त्राता बनें। भावों को शुद्ध-सकारात्मकता रखें और तप करें। इससे हमारी बंध आत्मा के दरवाजे खुल सकते हैं।
मुनि शुभंकर जी ने अपनी भावना श्रीचरणों में अर्पित की। सुमतिचंद गोठी ने अपनी बात रखी। शाहरूख खान, मुमुक्षु निशा डागा, दक्ष नखत ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि हम समय का सदुपयोग करें।