झुक्यो रेवै शीष: मिलती रेवै आशीष

झुक्यो रेवै शीष: मिलती रेवै आशीष

वैशाखा री बलबलाती लूओे, आंख्या काढ़तो तावड़ो, भोझर सी तपती बालू में, धवल धोरां रै टीलां में पराक्रम और पुरूषार्थ रा किलां रोपणियां, श्रमबिन्दु नै बहा-बहा इतिहास रै सिंधु में नया-नया मोती निपजावणियां तेरापंथ रा इग्यारहवां आचारज- संत जीवन री सुभट बानगी में, सोनेसी धरती रै कण-कण नै चमका रह्या है। तेरापंथ धर्मसंघ री गुम्मैज भरी उज्ज्वल संस्कृति री ध्वजा फहरा रह्या है। पूजी महाराज री किरपा रै साथै हवा रो रूख पूजी महाराज री जन्मभूमि, दीक्षाभूमि, पदाभिषेकभूमि, युगप्रधान अलंकरण भूमि सरदारशहर में तेज गति स्यूं बहणै लाग्यो। लूआं री लपटां में शांति रो जमघट जमग्यो, बूढ़ा-बडेरा न लागै सतरंगो इन्द्रधनुष बणग्यो जवानां न लागै सपनां में रंग भरग्यो, टाबरां न लागै खुणखुणियो मिलग्यो। जीवन रै न्यारां-न्यारां पहलू में तीज-त्यौहारां रै साथै युगप्रधान रो मोटो मोच्छव मिलग्यो।
ओ उच्छब है- गण री गहरी नींवां रो, श्रम री छवि रो, करूणा री छांव रो, जागृत अन्तर्दृष्टि रो। नाथ पंथ रा गोरखनाथ जी महाराज री वाणी है- ‘अंरिवयन माहि दृष्टि लुकाले, काना माहि नाद, शून्य माहि सुरता रमा ले, यो ही पद निर्वाण।
गहरो दर्शन, नाद-श्रवण, बिना आलम्बन री अन्तर्मुखता म्हारै प्रभु में साक्षात् विराजै। बिना भावां रो दर्शन कोनी, बिना प्राणां री साधना कोनी, बिना बुद्धि रा विचार कोनी, बिना ज्ञान रो चांदणों कोनी। आत्मसेवा री ठावकी बानगी है, समाज सेवा री संजीवनी है, नर सेवा री तो लागै जानकी हैं। जानकी तो केवल राम सेवा में ही जीवण खपायो पण करूणा रा सिरमौर हर भक्तां री पीड़ा न सुनकर समझकर सहानुभूति स्यूं प्रतिकूल मौसम री मार झेलकर बिनै पूरी करणै वास्तै, न चालण रो आन्तरो देखै, न शरीर री सुख-सुविधावां री लीक खींचै, न कष्टां री परवाह करै। अन्तः स्थल री संवेदना स्यूं भक्तां री भावना नै पूरी करै, ओ ही साचो सांवरों हैं, जठै सांवरै री सरजी सृष्टि में अभेद है भेद तो मिनख रो बजायोड़ो है। कितां जूझते जीवन नै आपरी ओज भरी, मीठास भरी वाणी स्यूं स्नान करार मृृदुता रै शिखर चढ़ एकलापन री ऊबाऊ खाट में उबासी लेवणिया नै साहस रो सहारो देर झट स्यूं उठा लिया, मारग-मारग बहता बटाऊं नै परोपकार रो पाणी पियार तिरपत कर दिया, आपदा री लचक स्यूं मोच झेलणियां माथै ने आछी सोच देर मॉर्डनाइज कर दिया।
आचार्य महाश्रमण भगवान री प्रतिमा आकृति में ही आच्छी कोनी, आदर्श री प्रतिष्ठा स्यूं जगमगा रही है, कीरती तो करतार रै कदम पर कदम मेल रही है, दिव्य प्रकृति री मूरत सबनै सरसा रही हैं। सरलता और सादगी रै साम्प्रत रूप नै-न राहू ग्रसित कर सकै, न केतु विषाक्त कर सकै। ऊर्जावान री ऊर्जा स्यूं आपरी प्रकृति न ही बदल देवे। म्हारो तो ओ ही संसार है, श्रद्धा रो कंठ हार है, घट-घट रो पहरेदार हैं और संसार स्यूं कीप डिसटेंस रो बोर्ड लगाणियों शिल्पकार हैं।
हे शिल्पकार! म्हारी अलसोड़ी आंख्या नै इस्यै अंजन स्यूं आंज दिया जकां स्यूं म्है आपरा साक्षात! दर्शन कर भव-भवरा करम काट सकां और सगलां ओच्छव-मोच्छव नै अठै बैठ्या ही साक्षात् निहार सकां हे ईश! झूक्यो रेवै शीष: मिलती रेवै आशीष।