शासनश्री साध्वी जयप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार

शासनश्री साध्वी जयप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार

अर्हम्

‘शासनश्री’ साध्वी धनश्री आदि साध्वियाँ 

कैसी शक्‍ति जगाई रे, अनशन थे धार्यो।
वीर वृत्ति दिखलाई रे, अनशन थे धार्यो।
दिल्ली प्रवास री साई रे, अनशन थे धार्यो॥औ॥

पथ संयम रो अपणायो, जीवन ने धन्य बणायो।
अंतर री ज्योति जगाई रे, अनशन थे धार्यो॥

चारों बहनों में छोटा, काम दिखलाया मोटा।
जयप्रभा विजय वरदाई रे, अनशन थे----॥

गुरु आज्ञा पर गहराई द‍ृष्टि, पाई गुरु कृपा शुभ वृष्टि।
शासन शोभा बढ़ाई रे, अनशन----॥

कलाओं में दक्ष कहाता, चतुराई खूब रखाता।
व्यवहार कुशलता सुहाई रे, अनशन थे----॥

भगिनी भतीजी योग मिल्यो है, कैसो सुंदर भाग्य खिल्यो।
दस सतियाँ सेवा सुखदाई रे, अनशन----॥

भावों की श्रेणी चढ़ती, महाश्रमण सन्‍निधि बढ़ती।
भव जल पार लगाई रे, अनशन----॥

क्षमा याचना हम करते, शुभ भावों को अनुसरते।
मंजिल मुक्‍ति री कमाई रे, अनशन थे----॥

लय : कैसी वह कोमल---

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