खुद को मैं समझाऊं कैसे?

खुद को मैं समझाऊं कैसे?

अंकित हैं यादों में अनुभव, शब्दों में बतलाऊं कैसे।
वर्तमान वह भूत बन गया, खुद को मैं समझाऊं कैसे।।

सुबह-सुबह छवि दिखती मनहर, श्रुति पद पर गुंजित मधुर स्वर,
‘जागृत रहो’ शिक्षा शुभंकर देती हमको जो निशि वासर।
स्वयं सो गई चिर निद्रा में, मन विश्वास जगाऊं कैसे?

कलम तुम्हारी प्रिय सहेली, सुलझाती हर कठिन पहेली,
सागर सम चिन्तन की शैली, सृजनशीलता भी अलबेली।
अमर बन गई जन मानस में, उनको मैं विसराऊं कैसे?

गुरुवर कृपा जीवन आश्वास, गुरु सम्मुख अंतिम उच्छ्वास,
युगप्रधान युग का इतिहास, शासनमाता नव पद न्यास।
गुरुत्तर स्थान गुरु ह्नदय में, गौरव गाथा गाऊं कैसे?