जीवन के हर व्यवहार में धर्म की साधना हो: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन के हर व्यवहार में धर्म की साधना हो: आचार्यश्री महाश्रमण

सरदारशहर, 27 अप्रैल, 2022
सरदारशहर गौरव, सरदारशहर के लाल, तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम सरताज आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी मायड़ भूमि सरदारशहर के तेरापंथ भवन में पधारे। समाधि स्थल से लगभग प्रातः 6ः50 पर विहार करते हुए पूज्यप्रवर महाश्रमण द्वार के पास पधारे। वहाँ से विशाल जनमेदिनी के साथ पूज्यप्रवर ने सरदारशहर में प्रवेश किया।
सरदारशहर में जन्में, सरदारशहर में बचपन बीता, सरदारशहर में ही दीक्षित हुए और सरदारशहर में ही तेरापंथ के सरताज बने। आपश्री के संसारपक्षीय पिता स्व0 श्री झुमरमल जी दुगड़ व माता सुश्राविका नेमाजी थे। आपश्री ने यहाँ के राजेंद्र विद्यालय में ही प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी। सरदारशहर का लगभग 22 दिवसीय प्रवास और सात मुख्य कार्यक्रम यहाँ आयोजित होने वाले हैं।
महामनीषी ने विहार के अंतर्गत मार्ग में जगह-जगह अपने चिर-परिचित श्रावक-श्राविकाओं को व अन्य लोगों को मंगल आशीर्वाद प्रदान करवाया। मार्ग में अपने संसारपक्षीय पैतृक घर भी पधारे। पारिवारिकजनों ने कांस्य की थालियाँ बजाकर मंगल अभिवादन किया। युगप्रधान समवसरण में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी जब मंचासीन हुए तब ऐसा लग रहा था कि मानो अयोध्या में श्रीराम पधार गए हैं। पूरा शहर राममय-अयोध्यामय बन गया था। जन-जन की जबान पर एक ही नारा था-जय-जय ज्योतिचरण, जय-जय महाश्रमण। जन-जन के राम ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि अर्हत् वाङ्मय में कहा गया है कि हमारी दुनिया में मंगल की कामना की जाती है। आदमी दूसरों के लिए भी मंगलकामना करता है व स्वयं का भी मंगल चाहता है। कुछ प्रयास-उपाय भी किया-लिया जाता है।
शास्त्रकार ने कहा कि सबसे उत्कृष्ट मंगल धर्म होता है। पदार्थों को भी मंगल के रूप में व्यवहृत किया जाता है। पदार्थों से बहुत ऊँचा मंगल धर्म होता है। धर्म कौन से हैं, इस संबंध में शास्त्र में तीन शब्दकाम में लिए गए हैं-अहिंसा, संयम और तप धर्म है। जिस आदमी के जीवन में अहिंसा है, संयम की साधना है और तपस्या है, तो जीवन में मंगल है। साधु के जीवन में तो पहला महाव्रत सर्व प्राणातिपात विरमण का होता है। साधु तो अहिंसा की साधना बड़ी सूक्ष्मता से पालन करते हैं। साधु न रात्रि भोजन करता है, यह भी अहिंसा और संयम की साधना है। साथ में तपस्या भी हो सकती है। साधु को न भोजन बनाना, न अपने लिए बनवाना। साधु भिक्षाचारी करे। गृहस्थों में अहिंसा की साधना करने का प्रयास हो। निरामिष व अनंत काय के उपयोग से बचें। रात्रि भोजन का परिहार करने का प्रयास करें। वाणी में भी अहिंसा झलके। मन में भी हिंसा का भाव न आए।
संयम है, वह भी धर्म है। अणुव्रत में भी संयम की बात है। संयम आधार-प्राणतत्त्व है, अणुव्रत का। छोटे-छोटे नियमों से संयम की साधना हो सकती है।, जैन धर्म में तपस्या का भी महत्त्व है। अक्षय तृतीया का प्रसंग सामने है। वर्षीतप भी एक अच्छी तपस्या है। ऊनोदरी करना भी तप है। तपस्या भी धर्म है, मंगल है। शास्त्रकार ने कहा है कि जिसका धर्म में मन लगा रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। आदमी के जीवन में धर्म रहे। धर्म स्थान या कर्म स्थान हर जगह धर्म की साधना की जा सकती है। जीवन के व्यवहार में भी धर्म हो। लगभग 262 वर्ष पहले आचार्य भिक्षु हमारे धर्मसंघ के प्रथम आचार्य हुए। उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा चली। नौवें आचार्य गुरुदेव तुलसी को हमने देखा है। उनके उत्तराधिकारी आचार्यश्री महाप्रज्ञजी हुए हैं। जिनका महाप्रयाण सरदारशहर में ही हुआ था।
आज हमारा सरदारशहर आना हुआ है। सरदारशहर मघवागणी की महाप्रयाण भूमि, माणकगणी की आचार्य पदारोहण भूमि एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की दीक्षा भूमि एवं महाप्रयाण भूमि है और भी अनेक प्रसंगों से जुड़ा हुआ क्षेत्र है। आज एक लंबे अर्से के बाद लगभग साढ़े आठ वर्षों बाद आना हुआ है। कुछ अनेक कार्यक्रम यहाँ के लिए निर्धारित हैं। सरदारशहर के जैन-अजैन सभी में धर्म और अध्यात्म की चेतना पुष्ट हो। सरदारशहर में साधु-साध्वियों एवं समणियों का भी अच्छी संख्या में आगमन हुआ है।

पूज्यप्रवर के सरदारशहर में पधारने पर उनकी अभिवंदना एवं स्वागत में व्यवस्था समिति स्वागताध्यक्ष महेंद्र नाहटा, तेरापंथ महिला मंडल एवं अध्यक्षा सुषमा पींचा, अणुव्रत समिति, अनिल शर्मा (राज्यमंत्री), नगरपालिकाध्यक्ष राजकरण चौधरी, व्यवस्था समिति अध्यक्ष बाबूलाल बोथरा, तेयुप अध्यक्ष राजीव दुगड़, सभा मंत्री पारस बुच्चा, नगरपालिका उपाध्यक्ष व मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि अब्दुलरशीद, आचार्य महाप्रज्ञ अध्यात्म सेंटर के संयोजक मदनचंद दुगड़ एवं सुमतिचंद गोठी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। पूज्यप्रवर के विहार मार्ग में जगह-जगह सभी संप्रदायों के लोगों ने भाव भरा स्वागत किया। चारों ओर हर्ष की लहर दौड़ रही थी। मुख-मुख पर एक ही नाम था-नेमाजी रे लाल ने घणी-घणी खम्मा। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि सरदारशहर का लाल कमाल कर सरदारशहर आया है। देश-विदेश की यात्रा कर, जन-जन के मन में जागृति का जोश जगाया है।