श्रद्धा शीश झुकाएं

श्रद्धा शीश झुकाएं

शासनमाते! तव चरणों में श्रद्धा शीश झुकाएं।
तेरी मंजुल स्मृतियां कर शक्ति अभिनव पाएं।।

धीर-वीर व्यक्तित्व तुम्हारा तुम हो श्रद्धा संबल
जो भी आया पास तुम्हारे पाया उसने जीने का बल।
गुणसमदर की लहर-लहर को कैसे आज बताएं।।

गण के एक-एक पौधे को सींचा तुमने जीभर।
रहा एक ही चिंतन हर पल संघ धरा हो उर्वर।
गुरुभक्ति व गणनिष्ठा का पाठ सदा पढ़ते जाएं।।

अधिकारों के युग में कर्त्तव्यों की कहानी कहती
तन की तीव्र वेदना को समता से हंसते सहती।
नमन करें उस महाशक्ति को गूंजे जिनकी आज ऋचाएं।।