अर्हम

अर्हम

क्यूं छोड़ पधार्या शासन माँ
शासन माँ म्हारै मन बसिया रे, म्हारै मन बसिया
वत्सलता अनपार रे,
पल-पल आसी याद रे,
कुण होसी तुम सम ओर रे।।

अंतर मन में प्यास घणी रे, दर्शन करां तिहां आय रे।
मन मंदिर सूनो बणियो रे, कुण रखसी माथै हाथ रे।।

निर्मल आभा अलबेली रे, मिलती शांति अपार रे।
स्वाध्याय में तल्लीन सदा रे, देता सीख हर बार रे।।

अंगुलियाँ स्फुरणा रहती रे, अणचक रुकिया बै हाथ रे।
ध्यान धर्यो खिण-खिण गण रो, गौण कर्यो अन पान रे।।

स्नेहिल दृष्टि देखंता रे, दौड्या म्हैं आता दिन रात रे।
कर मुष्ठि मुखडो धरता रे, निरखण तरसै ए नैण रे।।

इती भी जल्दी क्यूं कर दी थे, कांई मन में बात रे।
प्रमुखाश्री जी, टाबरियां री आवाज रे।।

लय: कुंवर थांस्यो मन लाग्यो---