गूंजे यश गाथाएँ

गूंजे यश गाथाएँ

गूंजे यश गाथाएँ

शासनमाता की महिमा, किन शब्दों से गाएं
जन-जन के मन मंदिर में, गूंजे यश गाथाएं।।

जीवन था सीधा-सादा, पर कलापूर्ण सारा
हरपल जागृत बन जीया, वह सौरभ महाकाएं।।

अनुशासन कला अजब थी, कब कहना कब सहना
वह सुधास्त्राविनी वाणी, सुनने को ललचाएं।।

जो आता तव चरणों में, निज कथा व्यथा लेकर
वत्सलता भरी निगाहें, उलझन को सुलझाए।।

गुरुचरण समर्पण भारी, गुरु वचन मंत्र माना
गुरुभक्ति संघअनुरक्ति, की पावन शिक्षाएं।।

आयोजन युगप्रधान का, कैसे हम रंग भरें
दो दिव्यलोक से दृृष्टि, भेजो नव रचनाएं।।

तेरी सन्निधि बिन बीता, सूना-सूना महिना
प्रभुवर भी बात-बात में, तेरी स्मृति करवाएं।।

उपकार तुम्हारे अनगिन, क्या-क्या हम बतलाएं
इस मासिक पुण्यतिथि पर, लो वंदन अर्चाएं।।

लय - प्रभु पार्श्व देव-----