त्याग से आत्मशक्ति का विकास एवं चेतना निर्मल हो सकती है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

त्याग से आत्मशक्ति का विकास एवं चेतना निर्मल हो सकती है: आचार्यश्री महाश्रमण

बुचावास, 21 अप्रैल, 2022
16 वर्ष पश्चात तारानगर में प्रवास संपन्न कर महातपस्वी महाश्रमण जी 16 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर बिडेन चिल्ड्रन एकेडमी, बुचावास पधारे। मुख्य प्रवचन में महान परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में शक्ति का बहुत महत्त्व है। बलवान आदमी महत्त्वपूर्ण होता है। जो निर्बल होता है, कमजोर होता है, वह एक कमी होती है और वह दुःखी भी बन सकता है।
दुनिया में अनेक प्रकार के बल होते हैं। जनबल, धन बल, मन बल, वचन बल, काय बल, अनेक बल हैं। संभवतः सबसे बड़ा बल तो आत्मबल होता है। आत्मा शक्तिशाली और पवित्र है, वह बहुत बड़ा बल होता है। कवि ने बताया है कि हाथी विशालकाय प्राणी होता है, पर एक अंकुश हाथी को वश में कर लेता है। सघन अंधकार को एक छोटा सा दीपक दूर कर देता है। बहुत बड़े पहाड़ को एक वज्र चूर-चूर कर देता है। बड़ी-बड़ी चीजें छोटों के द्वारा नियंत्रित हो जाती है, उनका विनाश हो जाता है। जिसमें तेज है, वो बलवान है।
आदमी यह सोचे कि मेरे पास जो भी शक्ति है, मैं अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करूँ। आत्म शक्ति से जुड़ा हुआ तत्त्व है, त्याग। त्याग से आत्म शक्ति बढ़ सकती है, चेतना निर्मल बन सकती है, आदमी सुखमय जीवन जी सकता है। बाह्य अनुकूलता भी हो सकती है, यह एक प्रसंग से समझाया कि त्याग से सब कुछ प्राप्त हो सकता है।
जो व्यक्ति अपने स्वार्थों को छोड़ता है, उसे शक्ति प्राप्त हो सकती है। विद्यार्थी बैठे हैं, उनमें ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार भी आएँ। जीवन में अहिंसा, संयम, नैतिकता, नशामुक्ति आए। ज्ञान और संस्कार दोनों बढ़िया होते हैं, तो बच्चों का जीवन भी अच्छा बन सकता है।
आज बुचावास क्षेत्र के इस विद्यालय में आए हैं। यहाँ अच्छा ज्ञान चले साथ में बच्चों में अच्छे संस्कार भी आएँ। संस्कार युक्त शिक्षा का क्रम चलता रहे। अभिभावक अध्यापक, संत लोग व संचालक मंडल ध्यान रखें तो बच्चों का जीवन अच्छा हो सकता है। पूज्यप्रवर ने बच्चों को प्रेरणाएँ दिलवाई।
पूज्यप्रवर के स्वागत में बुचावास एकादमी के व्यवस्थापक बलवान तेतरवाल, जिला परिषद सदस्य विमला कासवा, चैनरूप डागा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।