हम अपने पुरखों के संदेशों और आदर्शों का अनुसरण करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हम अपने पुरखों के संदेशों और आदर्शों का अनुसरण करें : आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म के शांतिपीठ पर आचार्यश्री महाश्रमण का पावन पदार्पण

अध्यात्म का शांतिपीठ, 25 अप्रैल, 2022

शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः हरियासर से विहार कर आचार्य महाप्रज्ञ समाधि स्थल अध्यात्म का शांतिपीठ पधारे। परम पावन ने अपने गुरु की समाधि स्थल पर आध्यात्मिक जप किया। गीत के पद्य का सुमधुर संगान किया। लगभग 8 वर्ष 4 माह पश्चात् पूज्यप्रवर का यहाँ पधारना हुआ है।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के परंपर पट्टधर ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि शास्त्र में कहा गया है-शत्रु क्या नुकसान कर सकता है? और ज्यादा भयंकर शत्रु कौन हो सकता है? हमारी दुनिया में मित्र भी बनाए जाते हैं, तो कई शत्रु भी बन जाते हैं। सबसे बड़ा शत्रु कोई है तो वह है हमारी दुरात्मा।
आत्मा के चार प्रकार बन जाते हैं-परमात्मा, महात्मा, सद्-आत्मा और दुरात्मा। परम अवस्था को प्राप्त आत्माएँ तो परमात्मा हैं। अनंत सिद्ध मोक्ष में विराजमान हैं। वे परमात्मा है। आत्मा का दूसरा प्रकार है-महात्मा। जो साधु है, वे महात्मा है। जिनके मन, वचन और प्रवृत्ति में कायिक चेष्टा में एकरूपता-सरलता होती है। साधु तो अहिंसा का पुजारी होता है।
साधु को तो भद्र, ऋजु, सरल होना चाहिए। महात्मा वह होता है, जिसकी कथनी-करनी में विसंगति नहीं है। साधु को अवांछनीय होशियारी नहीं करनी चाहिए। आत्मा का तीसरा प्रकार है-सदात्मा। गृहवासी है, वो संन्यासी तो नहीं बन सकते। गृहस्थ जीवन में है, वे सदात्मा बने। जो सदाचार वाले सज्जन पुरुष होते हैं, वे सदात्मा होते हैं।
चौथा प्रकार है-दुरात्मा, दुष्ट आत्मा। जो दुर्जन है, वो दुरात्मा होता है। दुरात्मा के मन में कुछ, वचन में कुछ है, करता कुछ है, कोई भरोसा नहीं है। साथ में हिंसा-बेईमानी, धोखाधड़ी में ज्यादा रहता है। जो मिथ्यात्वी है, वह दुरात्मा है।
शास्त्रकार ने कहा है कि अपनी दुरात्मा बनी आत्मा जो हमारा नुकसान कर सकती है, उतना नुकसान गला काटने वाला शत्रु भी नहीं कर सकता। गला काटने वाला
तो एक जीव का नुकसान कर सकता है। हमारी दुरात्मा तो कितने जन्मों को बिगाड़ सकती है। हमारी बड़ी शत्रु दुरात्मा बनी आत्मा है।
आदमी जीवन में पाप कर लेता है, धर्म नहीं करता है। बुढ़ापा आ गया, बीमारियों ने घेर लिया तब सोचता है, मैंने जिंदगी में पाप इतने किए हैं, अब मेरा क्या होगा। नरक होता है, पापी लोग नरक में जाते हैं। मेरी क्या गति होगी। हमें अंत में पश्चात्ताप न करना पड़े, इसलिए पहले से ही सदाचार जिंदगी में रहे। कदाचार, भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार इनसे बचने का प्रयास होना चाहिए।
आज परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की समाधि स्थल पर आए हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का कितना लंबा समय पर्याय था। सरदारशहर में ही दीक्षा हुई थी। अंतिम महाप्रयाण स्थल भी सरदारशहर है। जन्म लेने वाला एक दिन तो अवसान को प्राप्त होता है। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी भी पधार गए । हम पुरखों के बताए मार्ग का अनुसरण करें। निमित्त शांति में सहायक बन सकते हैं। महान व्यक्तित्व आते हैं, वे कईयों को राह दिखा देते हैं, चाह पैदा कर देते हैं। हम अध्यात्म और परम शांति की दिशा में आगे बढ़ते रहें, मंगलकामना।
समाधि स्थल पर पधारने से पूर्व आचार्यप्रवर सेठ बुधमल दुगड़, राजकीय महाविद्यालय में निर्मित ओडिटोरियम में पधारे। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार विद्यार्थियों में पुष्ट हों। अच्छे संस्कारों से आत्मा निर्मल बनती है और दूसरों के लिए भी उपयोगी हो सकती है। पूज्यप्रवर ने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को समझाकर स्कूल-कॉलेज के बच्चों को स्वीकार करवाए।
कॉलेज के जैनोलॉजी विभाग में पूज्यप्रवर पधारे। स्वामी विवेकानंद की मूर्ति के अनावरण स्थल पर पधारे।
बाद में भंवरलाल दुगड़ आयुर्वेद विश्व भारती के स्थल में निर्मित प्राणनाथ हॉस्पिटल में पधारे। वहाँ पर पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि चार शब्द हैं-व्याधि, आधि, उपाधि और समाधि। हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बीमारी से दूर हांे और समाधि में रहें। मन में शांति रहे। बीमारी है, तो चिकित्सा पद्धतियाँ भी कई हैं। प्रशिक्षण अच्छा हो तो कार्य अच्छा हो सकता है। छोटे-छोटे विद्यार्थियों को प्रेरणा देकर नशामुक्ति के संकल्प करवाए।
मुख्य नियोजिकाजी ने कहा कि विहार चर्या को ऋषि के प्रशस्त माना गया है। आचार्यप्रवर इसी परंपरा का अनुसरण कर रहे हैं। आचार्य प्रवर आज अध्यात्म के शांतिपीठ पर पधारे हैं। यह स्थान जन-जन को शांति का पाठ पढ़ा रहा है। लोग आचार्यप्रवर की अहिंसा से प्रभावित-लाभान्वित हुए है।।
पूज्यप्रवर के स्वागत में महासभा अध्यक्ष मनसुख सेठिया, आ0म0 प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष बाबूलाल बोथरा, सुमतिचंद गोठी, सिद्धार्थ आंचलिया, नरेंद्र नखत, अशोक पींचा, महिला मंडल ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।