यादें... शासनमाता की - (5)

यादें... शासनमाता की - (5)

सा0प्र0 ने संस्कृत में श्लोक फरमायाµ
गुरवो बहवः सन्ति, शिष्यवित्तापद्वारकाः।
दुर्लभ सद्गुरुरेवः, शिष्टासंतापहारकः।।
आ0प्र0: ये श्लोक आपका बनाया हुआ है क्या?
सा0प्र0: नहीं।
आ0प्र0: ऐसे ही फरमा रहे हैं।
सा0प्र0: तहत्।
सा0 सुनंदा: यह श्लोक सा0प्र0 जी ने हमें अस्पताल में सिखाया था।
आ0प्र0: इसका अर्थ क्या है? तुम क्या समझी?
सा0 सुनंदा जी मौन रहे।
आ0प्र0: दुनिया में ऐसे गुरु तो बहुत हैं जो शिष्यों से पैसा लेते हैं। ऐसे गुरु बहुत कम हैं जो शिष्य का सन्ताप हरते हैं।
सा0प्र0: अठा गुरुदेव पधारने की कृपा करवाएँ।
आ0प्र0: वापस हम 5ः40 के आसपास आते हैं, जैसे समय होगा। आज हम दिन में प्रायः यहीं पर थे। (आज प्रातः 7 बजे से सायं 6ः15 तक) सा0प्र0 के पास वाले कमरे में (अनुकंपा भवन) आ0प्र0 विराजित थे।
आ0प्र0 वापस पधारने लगे तो सा0प्र0 ने हाथ जोड़े।
आ0प्र0: अब हाथ जोड़ने का परिश्रम भले मत करवाया करो। बहुत हाथ जोड़े हैं।
साध्वीवर्याजी: दोनों तरफ ही हाथ जुड़ते रहते हैं।
सायं 5ः42 पर आचार्यप्रवर का पुनः पधारना।
सा0प्र0: गुरुदेव कृपा कराई, एक दिन में कितनी-कितनी बार संभाल रहे हैं।
आ0प्र0: व्यक्ति के मानसिक प्रसन्नता रहे तो उसका समय आसानी से निकल सकता है। वास्तव में वेदना कितनी है?
सा0 सुमतिप्रभा: छाती में दर्द, भारीपन है। पाँवों में दर्द है। कभी एक कान में भी दर्द होता है।
सा0प्र0: गुरु के प्रताप से सहन हो रहा है।
सा0 सुमतिप्रभा: सोये-सोये रहना भी तो आसान नहीं है। पीठ आदि पूरी गर्म हो जाती है।
आ0प्र0: करवट भी नहीं बदली जाती। कोई पूर्व के कर्म उदय में आ रहे हैं।
सा0प्र0: कर्म का फल ही भोगना है।
आ0प्र0: वेदना नहीं हो तो कम से कम सोया-सोया ही व्यक्ति रह जाए।
सा0प्र0: गुरुदेव वेदना कम होने पर अत्यधिक ध्यान रखवाते हैं।
आ0प्र0: वेदना ज्यादा होने से डॉ0 के पेनकिलर देने से कुछ राहत मिल सकती है।
सा0 सुनंदा: पेनकिलर से किडनी में इफेक्ट होता है।
आ0प्र0: दूसरे इफैक्ट नहीं हो जाए।
सा0प्र0: वेदना कम करने के लिए गुरुदेव ही फरमा देवें।
आ0प्र0: डॉ0 को पूछें तो सही कि पेनकिलर दे दें क्या?
सा0प्र0: पेनकिलर क्या करेगी?
आ0प्र0: सहन करने से निर्जरा होगी, ऐसा मानकर चलें।
सा0 कल्पलता: 3 दांत एक साथ निकलवाए तब भी सहन किया, पेनकिलर नहीं ली।
आ0प्र0: कर्म तो भोगने ही पड़ेंगे, भले ही कभी भी भोगो।
साध्वियाँ: पेनकिलर लेने के बाद प्रदेशोदय में वे कर्म भोग लिए जाते हैं क्या?
आ0प्र0: शायद वो कर्म उतने ही थे फिर दवाई लेने से ठीक हो गया। मुझे ठंड लग रही है, दरवाजा खुला है। थोड़ी देर बाद जब दरवाजा बंद कर दिया तब ठंड लगनी भी बंद हो गई। हो सकता है मेरे कर्मों के खाते में से कुछ कर्म कट जाएँगे और कुछ रह जाएँगे, जिन्हें बाद में कभी भोगना पड़ेगा।
साध्वियाँ: वेदना हो रही है, पेनकिलर लिया और वेदना शांत हो गई, तो क्या हमें वह वेदना बाद में कभी भोगनी पड़ेगी?
आ0प्र0: हो सकता है उस समय वेदनीय कर्म उतना ही उदय में आने वाला था।
साध्वियाँ: निर्जरा कैसे होगी?
आ0प्र0: जो कर्म मेरे 500 वर्ष बाद उदय में आने वाला था, उसको मैंने तपस्या करके आज ही भोग लिया तो बाद में वह तकलीफ नहीं देगा। पुण्य भी जो 600 साल बाद उदय में आने वाला था, वर्तमान में प्रमाद करके उसे भी कमजोर बना दिया जाता है। पुराने संत कहतेµछोटे उपकरण (खंडिया आदि) बिना प्रतिलेखन के छोड़ दें तो पुण्य क्षय (खेरू) होते हैं। समता से सहन करना कर्म निर्जरा का एक साधन है। डॉ0 से बात तो करें कि वेदना को कम कैसे किया जा सकता है। साध्वियाँ रात में जागती हैं क्या?
साध्वियाँ: तहत्, कभी एक कभी दो।
आ0प्र0: सेवा का बहुत अच्छा मौका मिला है। हालाँकि ऐसा मौका न आए, पर आ जाए तो अच्छे ढंग से सेवा करनी चाहिए।
आ0प्र0 के ग्रास से सा0 चित्रलेखाजी ने तेले का पारणा किया और सा0 अनन्यप्रभाजी ने तेला प्रारंभ किया।

(क्रमशः)