मनुष्य जीवन जीने का लक्ष्य हो मोक्ष की साधना: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मनुष्य जीवन जीने का लक्ष्य हो मोक्ष की साधना: आचार्यश्री महाश्रमण

राजगढ़, 16 अप्रैल, 2022
चुरु जिले के लाडले अनुकंपा के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी का चुरु जिले के राजगढ़ शहर में पधारना हुआ। महामहिम ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि एक प्रश्न किया जा सकता है कि जीवन क्यों जीएँ?
हमारे जीवन में दो तत्त्व हैंµआत्मा और शरीर। आत्मा एक स्थायी तत्त्व है, शरीर जो स्थूल है, वह अस्थायी है। इसको टिकाने के लिए आदमी को परिश्रम करना होता है। जीवन का लक्ष्य क्या है? इसका उत्तर आर्षवाणी में दिया गया है कि जो मानव जीवन है वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। मनुष्य जीवन में आदमी साधना करके वर्तमान के बाद मोक्ष तक भी पहुँच सकता है। अन्य जीवन सीधे मोक्ष नहीं जा सकते। मनुष्य जीवन मोक्ष का द्वार है।
मनुष्य जो ऊँची साधना कर सकता है, अन्य गति के जीव वह नहीं कर सकते। मनुष्य जीवन को जीने का लक्ष्य होना चाहिए-मोक्ष की प्राप्ति। मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ना, वह साधना इस जीवन में की जा सकती है। पूर्व कर्म क्षय के लिए इस शरीर को धारण करना चाहिए। जीवन जीना चाहिए।
साधु का लक्ष्य तो मोक्ष होता ही है, पर गृहस्थ का लक्ष्य भी मोक्ष प्राप्ति हो। हो सकता है कि साधु जितनी साधना गृहस्थ न भी कर सके। गति मंद हो
सकती है, परंतु इस दिशा में कुछ तो आगे गृहस्थ भी बढ़ सकता है। कई-कई गृहस्थ बहुत अच्छे साधक हो सकते हैं। जिनमें संयम का अभ्यास है, त्याग है, व्रत है, नियम है, श्रद्धा है, तत्त्व ज्ञान है। गृहस्थ साधना करे तो मोक्ष की दूरी कुछ कम हो सकती है।
मानव जीवन है, इसको आदमी प्राप्त करके पापों, भोगों, व्यसनों में गंवा देता है, वह व्यक्ति तो एक संदर्भ में अभागा आदमी है, जिसने इस महत्त्वपूर्ण जीवन, अवसर को गंवा दिया। गृहस्थ छोटे-छोटे नियम जीवन में स्वीकार कर आत्म उद्धार कर सकते हैं। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान अध्यात्म की साधना की ही बात है।
मानव जीवन का उपयोग धार्मिक साधना में भी हो। 24 घंटों में कुछ समय धर्म साधना में लगाया जाए। शनिवार की 7 से 8 सामायिक की साधना हो। जैन-अजैन जो भी है, वे आध्यात्मिक साधना में समय लगाएँ। हमारे जीवन व्यवहार में धर्म आ जाए यह एक प्रसंग से समझाया कि व्यस्त समय में भी व्यवहार में धर्म की साधना की जा सकती है। जीवन में ईमानदारी हो। पारदर्शिता रखें।
धर्म के दो प्रकार हो जाते हैंµएक तो उपासना-साधना परक धर्म दूसरा है व्यवहार और कार्य के साथ धर्म को जोड़ देना। अहिंसा, मैत्री, संयम जीवन में आ जाए। हमारा जीवन भी धर्म-स्थान बन जाए। कर्म-स्थान भी धर्म-स्थान बन जाए। दुकानदार ईमानदार रहे। राजनीति में भी अहिंसा, नैतिकता रहे। राजनीति भी सेवा का माध्यम है, उसमें शुद्धता रहे। अधिकार मिला है, तो उसका सदुपयोग हो। उपकार-सेवा का काम करो। जो ये कार्य नहीं करता है, उसके अधिकार शब्द में से अ को हटा दो और क में आधा क और जोड़ दो। प्रयास हो कि अधिकार उपहार बन जाए।
राजनीति हो या समाज नीति सबमें अहिंसा धर्म का प्रभाव रहे। राजनीति में कर्तव्य-पालन का धर्म तो होना ही चाहिए। देश की सब नीतियों में अहिंसा, नैतिकता प्राण के रूप में विराजमान रहते हैं, तो नीतियाँ सुनीतियाँ बन सकती हैं। कहीं नीति दुर्नीति न बन जाए। गृहस्थ का लक्ष्य हो मोक्ष की प्राप्ति और उसके लिए धार्मिक साधना करनी चाहिए।
आज अब थली की यात्रा हो रही है। राजगढ़ आना हुआ है। राजगढ़ में प्रवासी लोग इकट्ठे हो गए हैं। श्रद्धा की भावना है। सभी में धर्म की भावना रहे। जहाँ भी रहें, धर्म की साधना चलती रहे। जैन-अजैन सभी में नैतिकता, सद्भावना और नशामुक्ति ये तत्त्व राजगढ़ शहर में पुष्ट रहे। सबमें आध्यात्मिक शांति, चित्त समाधि रहे।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि दुनिया में वृक्ष बहुत हैं, पर कल्पतरु जैसा वृक्ष नहीं है। आज राजगढ़ में एक कल्पवृक्ष आया है, जो बहुत कुछ देने वाला है।
पूज्यप्रवर के राजगढ़ पधारने पर उनके स्वागत में स्थानीय महिला मंडल ने गीत, किशोर मंडल से पीयूष सुराणा, हनुमानमल (महामंत्री), विधायक पवन पूनिया, मुकेश श्रेयांस, पीयूष गधैया, गीत, हरकचंद जसकरण सुराणा परिवार, नाहटा परिवार, सुमन नाहटा, चंपालाल नाहटा परिवार, कन्या मंडल, कन्हैयालाल सुराणा परिवार, श्याम मुशरफ, राजगढ़ कोचर परिवार ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि हमें कर्मवाद के साथ धर्मवाद को भी समझना है।