हे सतिशेखरे!

हे सतिशेखरे!

महासती महाश्रमणीजी का महाप्रयाण एक महापुष्प के झर जाने के समान है, जिसकी सुरभि से सुरभित समुचित गण नन्दनवन वर्षों-वर्षों तक महकता रहा। भले ही वह महापुष्प हमारे दृश्य जगत से ओझल है पर उसकी ममतामयी सुरभि सदैव अमिट व अमर रहेगी और श्रद्धालुओं को उनकी सन्निकटता की अनुभूति करवाती रहेगी।
शासनमाता के चले जाने से एक बार धर्मसंघ बहुत बड.ी रिक्तता का अनुभव कर रहा है किन्तु मेरा दृढ. विश्वास है कि जिस तरह आचार्यश्री महाश्रमणजी के कर्तृत्व में गुरुदेव तुलसी दिखाई देते हैं

उसी तरह भविष्य में शासनमाता भी किसी न किसी में पुनः दिखाई पड.ेंगे।
हे सतिशेखरे! आप हैं, आप रहेंगे, अजर-अमर, एक प्रेरणा पुन्ज बनकर।

मुनि योगेश कुमार