शासनमाता पर है नाज

शासनमाता पर है नाज

जिनके उपकारों से उपकृत तेरापंथ समाज।।
(1) कलकत्ता में जन्मे सतिवर, केलवा सन्यास शुभंकर
छोटी वय में दीक्षा लेकर रचा सुहाना साज।।
(2) अनुपमेय व्यक्तित्व तुम्हारा, भैक्षवगण का दिव्य सितारा।
तुलसी की अनुपम कृति की पुण्याई बेअंदाज।।
(3) समय मात्र प्रमाद न करना, सर्दी गर्मी से नहीं डरना।
विनय समर्पण अनुशासन से पाया जीवन राज।।
(4) गण की सुषमा शिखर चढ.ाई, जन-जन में आस्था विकसाई।
चमकी दिव्य मणी सी आभा, श्रमणी गण सिरताज।।
(5) साध्वीगण को खूब संवारा, खिला-खिला सौभाग्य हमारा।
कर देते तुम आधि व्याधि का पल में सकल ईलाज।।
(6) साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी, जीती तुमने जीवन बाजी।
महाश्रमण की शुभ सन्निधि में सिद्ध हुआ हर काज।।
(7) हमसे इतनी रूठ गई क्यों? स्वर्गलोक में चली गई क्यों?
राह निहारुं कब आओगे बतलाओ सतीराज?
(8) पल-पल में तुमको ही ध्याऊं, तेरे जैसी मैं बन जाऊं।
मेरे दिल की हर धड.कन में एक यही आवाज।
(9) अब तो यादें अंतरमन में, महक रही हैं ह्नदय गगन में।
कौन सुनाए रक्षित के कानों में मधुरी गाज।।

लयः- कितना बदल गया संसार----