शासन माँ

शासन माँ

शासन माँ, शासन माँ, शासन माँ, शासन माँ,
शासन माँ के गुण अपनाकर, अपनी मंजिल को पाएँ जीवन बगिया सरसाएँ।।

अप्रमत्त थी जीवनशैली, शिक्षाएँ तेरी अलबेली।
सुनी, जो देखी, अपनाएँ।।1।।

जब-जब श्रीचरणों में जाती, नया प्रशिक्षण हर क्षण पाती।
निर्मल गंगा में नहाए।।2।।

अजब-गजब तेरी पुण्याई, गुरुनिष्ठा श्रद्धा गहराई।
वैसी हम सबमें आए।।3।।

ऐसी साध्वी प्रमुखा पाई, संचित सुकृत की यह साई।
गण गणी का गौरव गाएँ।।4।।

अमृत महोत्सव आया पावन, नंदनवन गण बन गया सावन।
शासनमाता कहलाएँ।।5।।

दिल्ली में इतिहास बनाया, महरौली का स्थान सुहाया।
क्या-क्या बातें बतलाएँ।।6।।

संघ समूचा है आभारी, बच्चा बच्चा हर नरनारी।
यादें भूल नहीं पाए।।7।।

लय: मत कर रे तु मोह---