शासनमाता असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री

शासनमाता असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री

शा: शान हा वे धर्मसंघ रा, सतियाँ म्हे प्रमुखा कहलाता हां।
स: समय रो उपयोग कर, अप्रमत्त रहणो सिखलाता हां।
न: नम्रता रो झरनो बहतो, जद ज्येष्ठ सतियाँ आता हां।
मा: मार्गदर्शक था श्रावक-श्राविका रा, जन-जन ओ बतलाता हां।
ता: तात्त्विक जान रो पायो खजानो, जद भी अवसर पाता हां।।

अ: अखिल विश्व तेरापंथ साध्वी मंडल में, पंच निष्ठा रा संस्कार भरवाता हां।
सा: साहित्य री लेखनी सुणी, दिल्ली म्हें भी चलवाता हां।
धा: धान बणायो गुरु चरणां ने, शिक्षा भी आ ही फरमाता हां।
र: रमण करो संयम म्हें निरंतर, समीक्षा हर पल करवाता हां।
ण: णमो अरहंताणं पद पाएँ, पोषण सदा ही दिलवाता हां।।

सा: सामंजस्य री कलावां दिखा, संगला रो हियो हरसाता हां।
ध: धवल सेना रो परिकर देख, साधुता शान बढ़वाता हां।
वी: वीरांगना सो संयम आपरो, चौथो आरो बरताता हां।
प्र: प्रचुर आचार निष्ठा री पुड़िया भर, मर्यादा भस्म दिखाता हां।
मु: मुक्ति धाम रो लक्ष्य दिला, आत्म अनुशासन सिखलाता हां।
खा: खान-पान री अनासक्ति बढ़ा, सतियाँ री व्याधि मिटाता हां।
जी: जीवन दरिया म्हे स्नेह बहा, वाणी स्यूं धावस बंधवाता हां।।