शासनमाता स्मृति स्वर

शासनमाता स्मृति स्वर

माँ! तेरे जीवन का यह सफर सुहाना था।
वत्सलता की मूरत क्यूं जल्दी जाना था।।

इस नंदनवन में तुम बन एक कली आई।
तुलसी आशीर्वर से विकसाई अरुणाई।
कर्तृत्व सबल तेरा किससे अनजाना था।।

हर एक परीक्षा को तुमने उत्तीर्ण किया।
अपनी यशगाथा को नभ सम विस्तीर्ण किया।
ना भूल सके कोई ऐसा अफसाना था।।

जब दूर रहा तुमने माँ हरदम संभाला।
शिक्षाओं में लगता ज्यों अमृतरस डाला।
क्यों छोड़ गए तुमसे कितना कुछ पाना था।।

गुरु भक्ति समर्पण की तुम थी सचमुच गीता।
तेरे जाने से अब लगता है सब रीता।
नम नयन वचन रुंधे पर कुछ तो गाना था।।

लय: गुरुदेव दया करक