वंदन करते बार हजार

वंदन करते बार हजार

कनकप्रभा की कनकप्रभा को, वंदन करते बार हजार।
पावन सन्निधि में चलती थी, मलयाचल की मलय बयार।।

क्यों छोड़ हमें तुम चली गई, नहीं समझ पाता चंचल मन।
चिकित्सा के साधन बहुत थे, (काश) स्वस्थ बना देते तेरा तन।
सबको मिलता पथ दर्शन तेरा, चिंतन को देती विस्तार।।1।।

ममता की मूरत महाश्रमणी थी, समता की मूरत महाश्रमणी थी।
क्षमता की मूरत महाश्रमणी थी, अप्रमत्तता की मूरत महाश्रमणी थी।
शासनमाता बन गई संघ की, पुलकित प्रमुदित हुए निहार।।2।।

सरस सलौनी सुखकर शीतल, कल्पतरु सी तेरी छाया।
अमृतवाणी की अमृत वर्षा से, श्रमणी गण रहता सरसाया।
निष्ठुर मृत्यु ने आकर के, क्यों आँखों में दी अश्रुधार।।3।।

राजहंस सी प्रखर मनीषा, महाश्रमणी जी तुमने पाई।
चिहुंदिशि में तेरी प्रतिभा की, बाज रही है यश शहनाई।
खैर चली गई फिर भी प्रतिपल, भरती रहना प्राणों में संचार।।4।।