भगवान ऋषभ के पारणे का दिन: अक्षय तृतीया

भगवान ऋषभ के पारणे का दिन: अक्षय तृतीया

जैनधर्म के अनुसार काल विभाग के दो भेद हैंµअवसर्पिणी और उत्सर्पिणी। दोनों के छह-छह आरे होते हैं। भगवान ऋषभ का जन्म अवसर्पिणी काल में तीसरे आरे के अंत में माता मरुदेवा की कुक्षि से हुआ। आपके पिता का नाम नाभि था। आपका जब जन्म हुआ तब राजानाभि और माँ मरुदेवा को ही नहीं पूरे राज्य में खुशियाँ बढ़ी, इतना ही नहीं चारों गतियों के जीव प्रसन्न हो रहे थे, क्योंकि तीर्थंकर के पाँच कल्याणक होते हैंµच्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान और निर्वाण। पाँचों समय देवता भी उत्सव मनाते हैं तो नारकीय जीव भी हर्षित होते हैं। क्योंकि देवता और नारकीय जीवों को जन्मजात ही अवधिज्ञान होता है और वे उस ज्ञान के आधार से जान लेते हैं कि यह जीव एक दिन तीर्थंकर बनेगा और जो तीर्थंकर बनने वाले होते हैं उन्हें गर्भ से ही तीन ज्ञान होते हैंµमति, श्रुति और अवधि। और दीक्षा लेते ही उन्हें मनःपर्यव ज्ञान हो जाता है।
ऋषभ ज्यों ही अवस्था प्राप्त हुए राजानाभि ने अपना सारा दायित्व ऋषभ को सौंप दिया। उस समय कल्पवृक्षों ने फल देने बंद कर दिए, जिससे लोगों के सामने भोजन की भयंकर समस्या हो गई थी। लोगों ने अपनी समस्या ऋषभ के सम्मुख रखी और ऋषभ ने उसका समाधान देते हुए असि, मसि, कृषि की प्रेरणा दी। लोगों ने उनकी प्रेरणा स्वरूप खेती प्रारंभ की और फसल तैयार हो गई, तब लोगों ने सोचा अनाज को कैसे प्राप्त किया जाए वह तो फलियों में आबद्ध था। पुनः ऋषभ के पास आए और अपनी समस्या रखी तब ऋषभ ने कहाµफसल की कटाई कर एक ढेरी की जाए उस पर पशुओं को घुमाया जाए ताकि पशुओं के खुरों से अनाज कचरे से फलियों से अलग हो जाएगा। लोगों ने वैसा ही किया परंतु पशु भी भूखे थे वे उस पर भ्रमण करते-करते अपना पेट भी भरने लगे, लोगों ने देखा अगर यह सारा पशु की खा जाएँगे तो हमारी समस्या का समाधान कैसे होगा? वे अपनी समस्या लेकर ऋषभ के पास आए और सारी स्थिति निवेदन की। ऋषभ ने समस्या का समाधान देते हुए कहा कि पशुओं के मुख पर छींकी लगा दो, ताकि अनाज सुरक्षित रह सके। लोगों ने छींकी का प्रयोग किया और समाधान हो गया। घर-घर में अनाज का अंबार नजर आने लगा। लोगों ने पशुओं की छींकी नहीं खोली जिससे पशुओं की भूख-प्यास के कारण बेचैनी बढ़ने लगी, पशुओं की आकुल-व्याकुलता देखकर लोग घबरा गए कि पशु न भूसा खा रहे हैं और न पानी पी रहे हैं। इसकी सभी को बड़ी चिंता हुई और ऋषभ के चरणों में अपनी समस्या रखी तब ऋषभ ने कहा कि पशुओं की छींकी खोली या नहीं? उन्होंने कहाµवह तो नहीं खोली। ऋषभ ने कहाµउसे खोले बिना पशु कैसे चारा चरेंगे, कैसे पानी पीएँगे? लोगों ने समुचित समाधान पाकर जैसे ही छींकी खोली पशु चारा चरने लगे, पानी पीने लगे और समस्या का पूर्ण समाधान हो गया। वह छींकी 12 घंटे बंधी रही इसके कारण ऋषभ के भी मानो आहार-पानी की लंबी अंतराय आ गई।
ऋषभ के दो पत्नियाँ थींµसुनंदा और सुमंगला। ऋषभ का परिवार बहुत विशाल था। 100 पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं, बड़े पुत्र भरत को राज्य का दायित्व सौंपकर आप दीक्षित हो गए। ऋषभ की दीक्षा के साथ ही हजारों लोग भी दीक्षित हुए परंतु लोगों को तब तक भिक्षा चर्या का बोध नहीं था। इसलिए आहार-पानी का तेरह महीने और दस दिन तक योग नहीं मिला, क्योंकि लोग सोचते इनको रोटी-पानी जैसी साधारण वस्तु क्या दी जाए। हाथी-घोड़े, वस्त्र-आभूषण भेंट किए जाएँ। ऋषभ उन्हें अनुपयुक्त समझते रहे और अपने मनोबल को कभी डिगने नहीं दिया, परंतु जो अन्य हजारों व्यक्ति दीक्षित हुए वे भूख-प्यास सहन नहीं कर सके और पथ से भटक गए।
सोमप्रभ के पुत्र श्रेयांस को एक दिन मेरु सिंचन का स्वप्न आया और उसने प्रातःकाल ज्यों ही ऋषभ मुनि को देखा और सोचा इनसे बड़ा मेरु कौन हो सकता है? महलों से नीचे उतरा और अपने घर में भेंटस्वरूप आए हुए इक्षुरस से भरे घड़ों की प्रार्थना की। ऋषभ ने देखा यह आहार प्रासुक और एषणीय है। ऋषभ महलों की और बढ़े पड़पौत्र श्रेयांस कुमार ने उत्कृष्ट भावों से ऋषभ को इक्षुरस बहराया और ऋषभ के तेरह महीनें और दस दिन की तीव्र तपस्या का पारणा हो गया। उस समय मनुष्यों ने ही नहीं देवताओं ने भी खुशी प्रकट की, आकाश से ध्वनि हुईµअहोदानं अहोदानं लोगों ने सोचा इक्षुरस तो हमारे यहाँ भी बहुत था परंतु उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि साधु-संतों को क्या बहराया जाए। इसीलिए घर-घर जब ऋषभ जाते तो हीरे-पन्ने, माणक-मोती, हाथी-घोड़ों की मनुहार करते थे।
भगवान ऋषभ पहले राजा, पहले मुनि और पहले तीर्थंकर बने। आज प्रथम तीर्थंकर की स्मृति स्वरूप चैतबदि अष्टमी भगवान ऋषभ के दीक्षा दिवस पर हजारों भाई-बहन वर्षीतप प्रांभ करते हैं। भगवान की तरह तेरह महीने दस दिन तो निरंतर भूख-प्यास सहन करनी कठिन है। परंतु एकांतर अर्थात एक दिन आहार और एक दिन उपवास इस प्रकार से अपना क्रम बनाकर बैसाख शुक्ला तृतीया के दिन भगवान ऋषभ के पारणे के दिन ही अपना तप संपन्न करते हैं, इसे वर्षीतप कहा जाता है।
अक्षय तृतीया अपने आपमें शुभ हो गई। संसारी लोग इस दिन को शुभ मानकर व्यापार, विवाह-शादियाँ, गृह प्रवेश आदि-आदि अपने सांसारिक काम भी किया करते हैं।
इस वर्ष अक्षय तृतीया का पर्व युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में सरदारशहर में मनाया जाएगा। वर्षीतप के साधक अपने परिवार सहित पूज्यप्रवर के चरणों में तपस्या का पारणा भी करेंगे तो कई नए लोग भी तपस्या का संकल्प ग्रहण करेंगे।