जीवन की गाड़ी में संयम का ब्रेक और ज्ञान का प्रकाश होना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन की गाड़ी में संयम का ब्रेक और ज्ञान का प्रकाश होना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

ददरेवा, 18 अप्रैल, 2022
शांतिदूत, जन-जन के उद्धारक आचार्यश्री महाश्रमण जी सादुलपुर से 15 किमी का विहार कर ददरेवा के कोठारी निवास पधारे। मुख्य प्रवचन में आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में शरीर है, आत्मा तो है ही। हमारा शरीर पाँच इंद्रियों वाला होता है। स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेंद्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोतेन्द्रिय है। जिसके पास श्रोतिन्द्रिय होती है, वह जीव पंचेन्द्रिय होता है।
कान हमारा एक ऐसा साधन है, जिसके द्वारा हम सुनते हैं। कान से सुनकर आदमी कितना ज्ञान कर लेता है। शास्त्रकार ने कहा है कि सुनकर कल्याण को जानता है, सुनकर बात को जानता है। सुनकर-जानकर जो श्रेय हो, छेक हो, कल्याणकारी हो उसका आचरण करना चाहिए। सुनना भी ज्ञान का एक बड़ा साधन है। कान दो हैं, मुँह एक है, इसलिए सुनना ज्यादा चाहिए, बोलना कम चाहिए। जो हितकर है, उसको ग्रहण करना चाहिए। साधु-संतों का प्रवचन, सत्संगत सुनने से शास्त्र की बात कान में पड़ती है। उसका अधिक महत्त्व है। साधु के जीवन में त्याग है, इसलिए वह कहने का ज्यादा अधिकारी है। कहनी-करणी में समानता हो, यह एक प्रसंग से समझाया। उससे अच्छा प्रभाव पड़ सकता है।
संत लोग जो धर्म का, नैतिकता का प्रचार करते हैं, उसका लोगों में असर भी होता है। प्रवचन करते रहो, कुछ तो असर होता रहेगा। प्रकाश का प्रयास करते रहो तो दुनिया कुछ ठीक रहेगी। युद्ध होता है, पर आखिर कभी तो विराम भी होता है। अहिंसा का दीप जलाने का प्रयास होता रहे। जीवन की गाड़ी में संयम का ब्रेक और ज्ञान का प्रकाश चाहिए।
ददरेवा गोरखनाथजी की भूमि और गोगाजी की जन्मभूमि है। गाँवों में भी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति पैदा हो सकते हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी तो टमकोर जैसे छोटे से गाँव में पैदा हुए थे। गाँवों में महापुरुष पैदा होने से उन गाँवों का भी महत्त्व बढ़ जाता है।
कान से अच्छी और हित की बात सुनें ताकि कान के माध्यम से दिमाग में अच्छी सामग्री जा सके। अच्छा सुनें, अच्छा देखें, अच्छा बोलें और अच्छा सोचें। हमारे मनोभाव अच्छे हो सकें। अणुव्रत के छोटे-छोटे संकल्पों से जीवन में ब्रेक रहे। इन संकल्पों को आदमी जीवन में उतारकर अच्छा बन सकता है।
चौरासी लाख जीव योनियों में मानव जीवन बड़ा दुर्लभ माना गया है, इसका हमें लाभ उठाना चाहिए। मानव जीवन में संयम, त्याग रहे, सत्संगत का जितना अवसर मिले, लाभ उठाया जाए। इस जीवन में हमारी आत्मा का उत्थान हो सके, ऐसा प्रयास हमें करना चाहिए। संतों की वाणी सुनने को मिले तो आदमी उसे जागरूकता से सुनें तो लाभ है। यह एक प्रसंग से समझाया कि प्रवचन सुनते समय नींद न लें। अच्छी बातों को सुनकर जीवन में उतारें तो कल्याण हो सकता है। आज ददरेवा आना हुआ है। गुरुदेव तुलसी पधारते रहते थे। भगवानदास कोठारी हमारे संसारपक्ष से संबंधी भी होते हैं। गृहस्थावस्था में भी ददरेवा आया हुआ हूँ। ददरेवा में भी जैन-अजैन सभी में शांति रहे, खूब धर्म की प्रभावना रहे।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि साधु का व्रत है, जीवन भर पद्यात्रा करना। पदयात्रा से छोटे-छोटे गाँवों के लोगों का उत्थान हो सकता है। परम पूज्य आचार्यप्रवर भी पदयात्रा करते हुए ददरेवा पधारे हैं। लोगों का भला करने गुरुदेव यहाँ पधारे हैं। गाँव के लोगों को शांति मिले ऐसी बात पूज्यप्रवर फरमाते हैं। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में दुलीचंद कोठारी, महिला मंडल, तारा सुराणा, लालचंद सुराणा, राकेश कोठारी, धर्मचंद कोठारी परिवार, सुजानमल कोठारी परिवार, हितेष सुराणा, प्रियंका सेठिया, लालचंद सुराणा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।