धर्म की साधना केवल धर्मस्थान पर ही नहीं व्यापारिक स्थान पर भी होनी चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्म की साधना केवल धर्मस्थान पर ही नहीं व्यापारिक स्थान पर भी होनी चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

हांसी, 8 अप्रैल, 2022
ऐतिहासिक नगरी हांसी, हरियाणा प्रांत की तेरापंथ की राजधानी हांसी, गुरु भक्ति में ओत-प्रोत श्रावक समाज हांसी। तेरापंथ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः हांसी शहर में पधारे। हांसी की गली-गली और जन-जन परम पावन के स्वागत में पलक पावड़े बिछाए स्वागत में खड़े थे।
नैतिक मूल्यों के पुरोधा आचार्यश्री महाश्रमण जी ने हांसीवासियों को मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी को अपने जीवन में यथा-औचित्य उम्र के साथ मोड़ भी लेना चाहिए। सदा एक सा समय नहीं रहता है। युवावस्था में व्यक्ति भाग-दौड़ कर सकता है वो 70 की उम्र में नहीं।
70 वर्ष की अवस्था में तो ज्यादा समय धर्म साधना मे लगाना चाहिए। माता-पिता का एक फर्ज यह माना जा सकता है कि संतान को शिक्षित कर देना। वह माता शत्रु है, पिता दुश्मन है, जो अपने बच्चों को पढ़ाते नहीं हैं। साथ में संस्कार अच्छे देते नहीं हैं।
आदमी के कई बार बुरे दिन आते हैं, तो पहले उसकी बुद्धि खराब होती है, वह बुरे मार्ग पर चला जाता है और सब कुछ गँवा सकता है। जो पढ़ा-लिखा होता है और जिसका भाग्य साथ देता है, वो आगे भी बढ़ सकता है।
अर्थ-अर्जन गृहस्थ जीवन में आवश्यक हो सकता है, उसके बिना काम भी नहीं चलता है। अर्थ-अर्जन के लिए आदमी कई व्यापार-धंधे भी करता है। व्यापार में व्यक्ति नैतिकता कितनी रखता है, वह महत्त्वपूर्ण बात है। दुकानदार ईमानदार रहे। धर्म स्थान में तो धर्म की साधना होती है, पर व्यापार में भी धर्म रहे। इससे अच्छे संस्कार आ सकते हैं। कर्म के साथ धर्म जुड़े। आदमी नैतिकता-ईमानदारी के प्रति रूझान रखे। बेईमानी-धोखाधड़ी न हो।
दुकान को शुद्ध रखने का उपाय हैµईमानदारी।ईमानदारी से सब जगह विश्वास जग जाता है। बेईमानी से तत्काल फल मिल सकता है, पर दीर्घकालीन दृष्टि से देखें तो बेईमानी नुकसानदेह हो सकती है। ईमानदारी से आत्मा अच्छी, चेतना शुद्ध रहती है। ईमानदारी से लंबे समय में लाभ भी ज्यादा हो सकता है। ईमानदारी सर्वत्र पूजनीय है।
पिता का अधिकार है कि वो मौके पर उलाहना भी दे सकता है। पुत्रों का फर्ज है कि पिता की अवज्ञा न करें। पिता पूजनीय होता है, उनके उलाहने को बुरा नहीं मानना चाहिए। पिता के लिए कमाई करने वाला सबसे अच्छा बेटा हो सकता है।
जिनेश्वर भगवान हमारे पिता के समान हैं। उनकी हम संतानें हैं। संतानें तीन प्रकार की हो सकती हैं। मनुष्य जन्म मिलना एक लाख की पूँजी है। जो आदमी इसको बुरे कामों में गँवा देता है, वह बड़े बेटे के समान हो जाता है। पापों में जो जीवन बिताता है, वो मरकर नरक या तिर्यंच गति में जाता है।
कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो न ज्यादा धर्म करते हैं न ज्यादा पाप करते हैं, वे मरकर वापस मनुष्य बन जाते हैं। कुछ लोग त्याग, तपस्या, संयम-साधना करके मरकर या तो देवगति में चले जाते हैं, या कोई मोक्ष में चला जाए। वह छोटे बेटे के समान है। गृहस्थ सोचे कि जीवन की गाड़ी ठीक चल रही है या गड़बड़ी है।
जीवन में ईमानदारी है, अहिंसा की भावना है, संयम है, साथ में धर्म-ध्यान
भी चलता है तो मानना चाहिए कि जीवन की गाड़ी ठीक चल रही है। ये सब जीवन में नहीं है तो जीवन में सुधार करने की अपेक्षा है। गृहस्थ एक सद्-गृहस्थ के रूप में रहे।
हमारे नवमें गुरु आचार्य तुलसी थे, जिनको आप कईयों ने देखा होगा। दसवें गुरु आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी थे, जो बड़े विद्वान थे। हरियाणा भी पधारे थे। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान आदि योग साधना से अध्यात्म की साधना करें। साधना के द्वारा इस मानव जीवन को धन्य बनने का प्रयास भी किया जा सकता है।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि जो ऐश्वर्य संपन्न होता है, वह भगवान होता है। आज आपके यहाँ तेरापंथ के भगवान आए हैं। आप आध्यात्मिक ऐश्वर्य से संपन्न है। वह ऐश्वर्य आपको अपनी साधना से, पवित्रता से प्राप्त है। आचार्यप्रवर का प्रशम भाव, उपशम भाव बढ़ता ही जा रहा है। आपकी वचन की शुद्धि भी एक कठोर साधना है। आचार्यप्रवर के कार्य शुद्धि भी हो जो ब्रह्मचर्य से प्राप्त होती है। आचार्यप्रवर का ब्रह्मचर्य का तेज भी विशिष्ट है। हमें पवित्रता पूज्यप्रवर से ही प्राप्त हो सकती है।
साध्वी सिद्धप्रभाजी जिन्होंने पिछला चातुर्मास साध्वी कंचनकुमारी जी लाडनूं के साथ किया था और बाद में साध्वी कंचनकुमारी जी का प्रयाण भी हो गया था ने अपने भाव पूज्यप्रवर के चरणों में अभिव्यक्त किए।
पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय सभा अध्यक्ष दर्शन जैन, महिला मंडल अध्यक्षा सरोज जैन, तेयुप अध्यक्ष मुदित जैन, अणुव्रत समिति अध्यक्ष अशोक जैन, हरियाणा प्रांतीय तेरापंथी सभा अध्यक्ष अशोक जैन, महिला मंडल समुह गीत, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, अग्रवाल समाज महिला मंडल, सभा मंत्री धनराज जैन, विवेक जैन (अग्रवाल विकास ट्रस्ट), राहुल कक्कड़, व्यापार मंडल प्रधान प्रवीण तायल, एमएलए विनोद, एसडीएम डॉ0 जितेंद्र, पूर्वमंत्री सुभाष गोयल, पूर्वमंत्री तरसेन सैनी, श्यामबाबा ट्रस्ट से जगदीश मित्तल, रमेश गोयल रवींद्र जैन, सचिन जैन (आम पार्टी), के0के0 जैन, दिनेश जैन, प्रीतम जैन व सुभाष माडावाले ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने दीपक के महत्त्व को समझाया।