शासनमाता री पुण्याई

शासनमाता री पुण्याई

शासनमाता री पुण्याई

साध्वी राजीमती

स्वामीजी रे संघ री थे शोभा घणी बढ़ाई।।हो।।
शोभा घणी बढ़ाई, दुनिया देख-देख चकराई।हो।।

चिंतन में भारी तरुणाई, निर्णय में गहराई।
लेखन संपादन संभाषण, वार्ता में सुघड़ाई।
कविता में होती जान जी, है बहुश्रुतता पहचान जी।
अनुशासन री कला अनोखी, कदम-कदम अरुणाई हो।।

तीन-तीन आचार्यां री थे, अभिनव सेवा साजी।
वर्ष पचास रह्या प्रमुखा पद, आखिर जीती बाजी।
ओ करे संघ सम्मान जी, थे घणो कर्यो बलिदान जी।
आभारी रहसी ओ शासन, सुयश ध्वजा फहराई हो।।

साठी रे कुएं रो पाणी, मन हो गहरो-गहरो।
तीनूं योगां पर थे रखता, पल-पल पूरो पहरो।
दृढ़ श्रद्धा रो आधार जी, हो निर्मलतम आचार जी।
महाश्रमणी जी थांरी यादां, जासी कियां भुलाई हो।।

शासनमाता री पुण्याई, जागी और जगाई।
करमां स्यूं लड़णै री विद्या, म्हांने खूब सिखाई।
समता रो करता पान जी, गुरुभक्ति में गलतान जी।
गुरु महाश्रमणजी अपणै हाथां, नैया पार लगाई हो।।

लय: स्वामीजी थांरी साधना री...