अपनेपन का सा व्यवहार

अपनेपन का सा व्यवहार

अपनेपन का सा व्यवहार

समणी जगतप्रज्ञा

दिए जो महाश्रमणी संस्कार, याद रहेगा नित उपकार।
कैसी घड़ियाँ ये आई हैं, अब तो स्मृतियाँ दिल में समायी हैं।।

समता, समता क्षमता की मूरत लगती मनहारी।
निज हाथों से कितनों की तुमने तकदीर संवारी।
उजला-उजला सा आचार, अपनेपन का सा व्यवहार।।

जब-जब स्वास्थ्य प्रतिकूल बना, पाया माँ का संदेशा।
मिलता था पाथेय मार्गदर्शन जब हुई अपेक्षा।
मिला है तुमसे स्नेह अपार, कैसे जतलाएँ आभार।।

जीवनभर ममता बाँटी फिर क्यों निर्मोहीपन धारा।
पीर पराई पीकर तुमने सबका नित कारज सारा।
अप्रमत्तता की तस्वीर, परम पराक्रम की नजीर।।

लय: नीले घोड़े रा...