नतमस्तक सारा संसार

नतमस्तक सारा संसार

नतमस्तक सारा संसार

साध्वी अमृतप्रभा

तुलसी की कमनीय कृति, नव्य भव्य ग्रंथाकार।
गुणरत्नों से भरा समंदर, नतमस्तक सारा संसार।।

कलाकार की अभिनव छेनी, युगानुरूप दिया आकार।
करुणामृत का पाकर सिंचन, स्वप्न किए तुमने साकार।
जीवन का हर पृष्ठ सुनहला, निश्छलता का पारावार।।

आगम से अनुस्थूत तुम्हारा, कण-कण जीवन का व्यवहार।
संपादन लेखन काव्यामृत, जिन शासन को तेरा उपहार।
शब्दातीत कर्तृत्व तुम्हारा, सरस्वती रूप अनुहार।।

कामकुंभ बन भरती हरदम, ग्रंथकलश रस जन पीते।
अनुपमेय व्यक्तित्व तुम्हारा, टूटे हुए दिलों को सीते।
लाखों की वैशाखी बन किया, प्राणों में नूतन संचार।।

सराबोर पौरुष खुशबू से, मनमोहक जीवन महफिल।
मुस्काती मोहनी मुखमुद्रा, स्नेहामृत बरसाता दिल।
वत्सलता अनुप्राणित अनुशासना, पा झंकृत हृतंत्री के तार।।

अथ से इति गुरु चरणों में, साँस-साँस का था उपयोग।
अंतर्यामी शीघ्र पधारे, सुदीर्घ विहार का किया प्रयोग।
तृप्त प्राण पा दर्शन चरणों में, टूटा साँसों का इकतार।।