नूर तुम्हारा अनुपम

नूर तुम्हारा अनुपम

नूर तुम्हारा अनुपम

साध्वी करुणाप्रभा

शासनमाता, याद है आता, नूर तुम्हारा वह अनुपम।
सारणा-वारणा श्रमणी-गण की करती रहती कदम-कदम।।

असाधारण, साध्वीप्रमुखा, शासन की शासनमाता।
संरक्षण में सिंचन पाकर मन आनंदित बन जाता।
पुरुषार्थी बन निज प्रतिभा से, महकाया था हर आलम।।

धन्य-धन्य तुलसी गुरुवर से पाया अभिनव अभिसिंचन।
अगम्य अलौकिक बनी धरोहर पाया जो अमृत पोषण।
गुरुदृष्टि आराधन करना, आठों याम बजे सरगम।।

तुलसी-महाप्रज्ञ युग में पाई शिखरों तक ऊँचाई।
नारी जाति की महिमा वो धरा-गगन में गुंजाई।
पौरुष का इतिहास निराला बोल रहा है अविरल श्रम।।

महातपस्वी महाश्रमण की, मर्जी तुम पर रही अनंत।
घोर वेदना में भी अंतर मन में खिलता रहा बसंत।
परम सौभागी को मिलती है ऐसी सन्निधि आखिर दम।।

ऐसी शासनमाता हमको कहाँ मिलेगी बतलाओ।
आँख दिखाने में भी ममता, राज हमें भी सिखलाओ।
शिक्षण का अनुसरण करेंगे है संकल्प यही दृढ़तम।।