नहीं भूलेगा यह मन

नहीं भूलेगा यह मन

नहीं भूलेगा यह मन

साध्वी नम्रप्रभा

शासनमाता महाश्रमणीजी, लगती थी मनभावन।
असाधारण साध्वीप्रमुखा, जीवन कितना पावन।।

आगम ज्ञानी सतिवर, प्रवचन कौशल निरूपम।
शैली अनुशासन की, मानी सबने अनुपम।
ममता की मूरत थी, समतामय था जीवन।।

कलाकार गुरु तुलसी ने, गण को उपहार दिया।
संघ की हर साध्वी पर, कितना उपकार किया।
है कालजयी व्यक्तित्व, सौभागी नंदनवन।।

पाथेय मिला जग को, वाणी थी कल्याणी।
बरगद की शीतल छाँव, चाहता था हर प्राणी।
हम कलिया गणवन की, सूना लगता उपवन।।

पलकों से मोती निकले, श्रद्धा की बहती धारा।
इंगित तेरा सबको, लगता कितना प्यारा।
तेरी यादों के गुलदस्ते, नहीं भूलेगा यह मन।।

लंबी यात्रा करके, प्रभु ने दिए दर्शन।
गुरु सेवा में बीते, जीवन के अतिम क्षण।
जीवन नैया पार करी, गुरु महाश्रमण चरणन्।।

लय: मेरा गीत अमर...