शासनमाता में होते मातृत्व के दर्शन

शासनमाता में होते मातृत्व के दर्शन

मुनि प्रशांत कुमार

शासनमाता महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने संथारे की अवस्था में समाधिमरण को प्राप्त कर अपने लक्ष्य की ओर प्रस्थान किया हैं उनके चले जाने से तेरापंथ धर्मसंघ उनका अभाव अनुभव कर रहा है। एक ऐसा महान व्यक्तित्व हम सबके बीच से अदृश्य हो गया, जो लाखों लोगों के लिए श्रद्धेय था, वंदनीय था, अभिनंदनीय था।
महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री जी के व्यक्तित्व निर्माण का गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी के मार्गदर्शन में हुआ। गुरुदेव श्री तुलसी ने ही उन्हें साध्वीप्रमुखा के पद पर पदासीन किया। उन्हें साध्वी समुदाय की अंतरंग देखभाल का बहुत बड़ा दायित्व सौंपा।
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने गुरुदेव के इंगित के अनुसार अपने दायित्व का निर्वाहन तो किया ही, अपने कुशल व्यवहार और नेतृत्व क्षमता से साध्वी समाज का दिल भी जीत लिया।
वे बहुत व्यवहार कुशल और विनम्र थी। साध्वियों के साथ-साथ सभी संत जन भी उनके व्यवहार से प्रसन्न थे। मैंने देखा, छोटे-बड़े सभी संत उनका बहुत सम्मान करते थे। आचार्यों के प्रति तो वे पूर्णतया समर्पित रहती थी। गुरुदेव का जो भी इंगित हो जाता, वे अक्षरशः उसको क्रियान्वित करती। गुरु के प्रति समर्पण भाव तो उनमें था ही, साथ-साथ पुरुषार्थ भी उन्होंने खूब किया, जिससे उनका व्यक्तित्व बहुआयामी होकर निखरता चला गया।
गुरुदेव श्री तुलसी के साहित्य का संपादन, यात्रा साहित्य का लेखन उन्होंने बखूबी किया। ‘मेरा जीवन: मेरा दर्शन’ साहित्य को आपने सुव्यवस्थित और सुंदर रूप देकर जनता के सामने प्रस्तुत किया। आप एक साहित्य प्रचेता व्यक्तित्व थे। साध्वी समुदाय में भी आपने साहित्यिक चेतना को जागृत किया। आपका कविता साहित्य बहुत मार्मिक और प्रेरणादायक है। तीनों ही आचार्यों के जन्मदिवस, पट्टोत्सव आदि विभिन्न अवसरों पर नई कविता की रचना कर आप प्रस्तुत किया करती थी।
महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने अपनी अद्भुत नेतृत्व क्षमता का परिचय संघ को दिया। एक ओर जहाँ समाज में संयुक्त परिवारों की व्यवस्था प्रायः खत्म हो चुकी है। घरों में दो या तीन बहुएँ साथ में नहीं रह पातीं, ऐसे समय में 500 से अधिक साध्वियों का नेतृत्व करना, एक डोर में बाँधे रखना कोई सहज बात नहीं है। मर्यादा महोत्सव आदि के अवसर पर अवसरों पर अनेक बार 300-400 साध्वियाँ आपकी सन्निधि में एक साथ रहती रही है। उन सभी साध्वियों को अपने कुशल व्यवहार से एक साथ रखते हुए संतुष्ट और प्रसन्न रखना आपकी विशिष्ट नेतृत्व क्षमता का ही कमाल है।
साध्वीप्रमुखाश्री जी के व्यक्तित्व की अनेकानेक विशेषताओं का सम्मान करते हुए ही संघ के आचार्यों ने उन्हें महाश्रमणी, संघ महानिदेशिका, फिर असाधारण साध्वीप्रमुखा और फिर शासनमाता जैसे विशिष्ट संबोधन प्रदान किए।
शासनमाता साध्वीप्रमुखा के व्यक्तित्व में हर किसी को मातृत्व के दर्शन होते थे। वे एक नजर भर देख लेती तो सभी को ऐसा अहसास होता कि माँ का आशीर्वाद मिल गया है।
ऐसी शासनमाता की आत्मा को शतशः नमन।