धर्म ऐसा तत्त्व है, जो हमारे व्यवहार को भी विशुद्ध बना देता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्म ऐसा तत्त्व है, जो हमारे व्यवहार को भी विशुद्ध बना देता है: आचार्यश्री महाश्रमण

लोहारी जाटू, 6 अप्रैल, 2022
सूर्य धीरे-धीरे अपना तेज बढ़ा रहा है, तो अध्यात्म जगत के भास्कर आचार्यश्री महाश्रमण जी भी अपने तप-तेज से जन-जन का उद्धार करते हुए सरदारशहर की ओर अग्रसर है। महामनीषी आचार्यप्रवर ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि धर्म एक ऐसा तत्त्व है, जो हमारे व्यवहार को भी विशुद्ध बना देता है। धर्म की अनेक बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। साधु के लिए धर्म की बड़ी बातें हैं। गृहस्थ हैं, धर्म की बड़ी बातों का आचरण करने में सक्षम न भी हो तो अणुव्रत जैसी सामान्य व्यवहार की बातें स्वीकार कर ले तो गृहस्थोचित व्यवहार हो सकता है। साथ में धर्म से भावित भी हो सकता है। एक घटना प्रसंग से समझाते हुए करुणानिधि ने फरमाया कि सामान्य बातें जो हमारे जीवन में काम आने वाली हैं, उनसे जीवन अच्छा रह सकता है। धर्म की बातें इस जीवन को भी अच्छा बना देती हैं और आगे परलोक भी अच्छा रह सकता है। गुरुजी ने राजा को समझाते हुए कहा कि गृहस्थ के लिए सामान्य सी बातें पहली बात है-पात्र में दान देना चाहिए। साधु घर में आ गया, साधु को कोई चीज की अपेक्षा है और गृहस्थ के पास वह उपलब्ध है, तो साधु को दान दो। साधु शुद्ध हो, वस्तु भी ठीक हो, देने वाला भी शुद्ध हो तो दान बढ़िया हो सकता है।
दूसरी बात है-गुरु सुविनय। त्यागी संत-गुरुजन है, तो उनके प्रति विनय का व्यवहार। हाथ जोड़ो, अभिनंदन करो। गुरु के साथ असद् व्यवहार नहीं करना चाहिए। तीसरी बात है-सब प्राणियों के प्रति दया-अनुकंपा का भाव रखना। मैं किसी के सुख-शांति में बाधा पैदा न करूँ। तीर्थंकर सब जीवों का कल्याण करते हैं, उन पर दया करते हैं। इसलिए वे प्रवचन करते हैं। चौथी बात है-न्यायोचित बर्ताव होना चाहिए। अनैतिकता से आदमी बचे। किसी के साथ ठगी की बात न हो। एक प्रसंग से समझाया कि हम किसी के साथ धोखाधड़ी न करें। पाँचवीं बात है-पर का हित हो ऐसे कार्य में रुचि लेनी चाहिए। छठी बात है-धन-लक्ष्मी का मद नहीं करना चाहिए। सातवीं बात है-अच्छों की संगति करनी चाहिए। साधुओं-सज्जनों की संगति करनी चाहिए। ताकि अच्छी बातें दिमाग में आती रहें। ये सात सामान्य धर्म की बातें हैं। ‘सत्-संगत से सुख मिलता है’ गीत के एक पद्य का सुमधुर संगान किया। राजा गुरुजी की सामान्य धर्म की बातें समझ गया। और जीवन में उतारने का प्रयास करने का आश्वासन दिया।
प्रवचन प्रारंभ होते ही श्रावक देशराज का स्वास्थ्य अस्वस्थ हो गया। करुणा सागर ने कृपा कर प्रवचन छोड़ उनको दर्शन देकर मंगलपाठ का श्रवण करवाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने करते हुए समझाया कि मंजिल पाने के लिए विश्वास चाहिए। आज सायं लगभग साढ़े छह किमी का विहार कर परम पावन बवानी खेड़ा पधारे। बवानी खेड़ा दादू नगरी के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ पर श्रद्धा के अच्छे परिवार हैं। पूज्यप्रवर ने स्थानीय जैन-अजैन सभी को मंगल पाथेय प्रदान करवाया।