विद्यार्जन के साथ संस्कारों का अर्जन और सृजन भी हो: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विद्यार्जन के साथ संस्कारों का अर्जन और सृजन भी हो: आचार्यश्री महाश्रमण

मिलकपुर-प्प्, 7 अप्रैल, 2022
विश्व शांति के प्रेरक आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः मिलकपुर के आनंद स्कूल ऑफ एक्सीलेंस विद्यालय परिसर में पधारे। स्कूल के अनेक विद्यार्थियों सहित श्रावक समाज को प्रतिबोधित करते हुए फरमाया कि ध्यान एक शब्द है। धार्मिक साहित्य में ध्यान पर प्रकाश डाला गया है। ध्यान शब्द हमारी बोलचाल की भाषा में भी उपयोग में आता है। साधना का एक प्रयोग हैµध्यान। जैन वाङ्मय में भी ध्यान शब्द काम में लिया गया है। अन्य साहित्य में भी ध्यान शब्द काम में लिया गया है। ध्यान यानी चिंतन करना। चिंतन हमारा कई बार बिखर जाता है। सधनता-एकाग्रता नहीं रहती है।
एकाग्रता युक्त चिंतन है, वह ध्यान है। एक आलंबन पर, एक बिंदु पर, एक केंद्र पर मन को नियोजित कर देना, वह ध्यान है। योग निरोध भी ध्यान है। न चिंतन करना, न हिलना, न बोलना। स्थिरता की साधना भी ध्यान है। आध्यात्मिक जगत में ध्यान की बड़ी महिमा है। जहाँ शरीर में शीर्ष का जो महत्त्वपूर्ण स्थान है, वृक्ष में मूल का जो आधारभूत स्थान है, धर्म के क्षेत्र में, साधु धर्म में इसी प्रकार ध्यान का महत्त्व है। ध्यान में सघन चिंतन, एकाग्र चिंतन या निर्विचार आदि की स्थितियाँ होती हैं। विद्यार्थी जीवन में भी एकाग्रता रहे। मन एकाग्र रहे। एकाग्रता एक शक्ति है। परंतु एकाग्रता निर्मल है या मल्लिन है। जहाँ राग-द्वेष मुक्त एकाग्रता है, वह निर्मल एकाग्रता है। जहाँ राग-द्वेष से जुड़ी एकाग्रता होती है, वह मल्लिन एकाग्रता हो जाती है। यह एक प्रसंग से समझाया कि साथ में रहने वाला ही साथी के चरित्र को अच्छी तरह जान सकता है।
विद्यार्थी बैठे हैं। ये बचपन विद्या अर्जन का समय है। प्रथम वय में विद्या का अर्जन नहीं किया तो कमी की बात रह सकती है। विद्या अर्जन के साथ संस्कार अर्जन, संस्कार सृजन का काम भी चलना चाहिए। जीवन-विज्ञान में जीने का तरीका समझाया जाता है। विद्या संस्थानों में अनेक विषयों के साथ-साथ योग, ध्यान, नैतिकता, ईमानदारी, सद्भावना के संस्कार भी विद्यार्थियों को मिलते रहें। यह भी एक प्रसंग से समझाया कि सुसंस्कारों के सिद्धांत पर अटल रहें। मेरे सामने बच्चे बैठे हैं, समझ गए होंगे कि परमात्मा सब जगह देखते हैं, तो छिपकर भी बुरा काम नहीं करना चाहिए। बुरे काम को आत्मा देख लेती है। किए कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। ईमानदारी जीवन में रहे। विद्यार्थी में अध्यात्म के, नैतिकता के संस्कार भी उनके भीतर में परोसने का प्रयास होता रहे। साथ में मन की एकाग्रता भी रहे। महाप्राण ध्वनि का पूज्यप्रवर ने प्रयोग करवाया। कोई भी कार्य करें हमारे मन की एकाग्रता जितनी अच्छी रहती है तो वह कार्य अच्छा हो सकता है। एकाग्रता के लिए जप-ध्यान आदि करें। मन एकाग्र हो और साथ में विद्यार्थी अच्छा परिश्रम करें तो कुछ सिद्धि मिल सकती है। अभ्यास करने से मन के भाव, मन के सपने पूरे हो
सकते हैं। आनंद विद्यालय के साथ आनंद जुड़ा हुआ रहे। विद्यार्थी पढ़ें तो उनमें भी आनंद आना चाहिए। नाम भी आनंद और कार्य में भी आनंद।

पूज्यप्रवर ने विद्यार्थियों को नशामुक्ति का संकल्प ग्रहण करवाया। आनंद स्कूल के डायरेक्टर आनंद भट्टेवाल ने पूज्यप्रवर के स्वागत-अभिवंदना में अपने भाव उद्घाटित किए। स्कूल की प्रिंसिपल रेणु अनेजा, एडवोकेट लाजपतराय ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। स्कूल के विद्यार्थियों ने पूज्यप्रवर के अभिनंदन में स्वागत गीत का मधुर संगान किया। व्यवस्था समिति द्वारा स्कूल के डायरेक्टर का साहित्य से सम्मान किया। स्कूल के डायरेक्टर आनंद भट्टेवाल ने अपने दोनों भाइयों के साथ पूज्यप्रवर से गुरुधारणा स्वीकार की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।