अध्ययन से ज्ञान की अभिवृद्धि और चित्त की एकाग्रता बढ़ती है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अध्ययन से ज्ञान की अभिवृद्धि और चित्त की एकाग्रता बढ़ती है: आचार्यश्री महाश्रमण

जिंदल स्कूल, हिसार, 9 अप्रैल, 2022
संबोध के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आज प्रातः हांसी से विहार कर जिंदल स्कूल के प्रांगण में पधारे। मार्ग में परम विभु स्थानीय विधायक विनोद के घर पर पधारे। श्री पार्श्वनाथ जैन अतिशय क्षेत्र भी पधारे
महायायावर ने मंगल देशना देते हुए फरमाया कि ज्ञान का बहुत महत्त्व है। ज्ञान अर्जन के लिए अध्ययन भी करना अपेक्षित होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि मुझे श्रुत-ज्ञान मिलेगा, इसलिए अध्ययन करना चाहिए। अध्ययन करने का पहला लाभ हैµज्ञान प्राप्त होता है। दूसरा लाभ बताया हैµमैं एकाग्रचित्त बन जाऊँगा।
आदमी का चित्त-मन चंचल भी रहता है। दार्शनिक से एक युवक ने चार प्रश्न पूछे। पहला प्रश्नµदुनिया में सबसे बड़ी चीज क्या है? उत्तर मिलाµआकाश। दूसरा प्रश्नµसबसे सरल काम क्या है? उत्तर मिलाµदूसरों की निंदा-आलोचना करना या बिना माँगे सलाह देना। तीसरा प्रश्नµसबसे कठिन काम क्या है? उत्तर मिलाµअपनी पहचान करना। चौथा प्रश्नµसबसे ज्यादा गतिशील कौन है? उत्तर मिलाµआदमी का विचार-मन।
ज्ञान के द्वारा मन को एकाग्र किया जा सकता है। ज्यों-ज्यों गहरा ज्ञान होता है, आदमी का चित्त एकाग्र होता जाता है। ज्ञान का तीसरा लाभ शास्त्र में बतायाµमैं अपने आपको स्थापित करूँगा। ज्ञान है, तो अच्छे मार्ग पर स्थापित हो सकता है। चौथा लाभ बतायाµमैं स्वयं सन्मार्ग में स्थित होकर दूसरे को भी सन्मार्ग में स्थापित करूँगा। जैसे साधु स्वयं सन्मार्ग पर चलते हैं और दूसरों को भी धर्म मार्ग पर चलाने का प्रयास करते हैं।
आज हम लोग इस विद्या-संस्थान में आए हैं। ये स्थान परिचित है। अनेक बार यहाँ आना हो चुका है। जिंदल परिवार से संबंधित विद्यालय है। विद्या संस्थान विद्या का मंदिर होता है। सृष्टि में देव शक्तियाँ भी हैं। खराब और अच्छी दोनों चीजें
सृष्टि में मिल सकती हैं। सरस्वती यानी विद्या आराधना दिव्य शक्तियाँ सृष्टि में होती है।
विद्यालय में ज्ञान विकास के साथ विद्यार्थी में अच्छे संस्कार अहिंसा, नैतिकता, विनयशीलता, विवेकशीलता, संयम की चेतना ऐसे संस्कार जो गृहस्थ जीवन के लिए आवश्यक हैं, का भी विकास हो। कितने विषय और भाषाएँ पढ़ाई जाती हैं। इनके साथ अध्यात्म विद्या, जीवन विद्या भी पढ़ाई जाए।
जिंदल परिवार का आचार्यों के साथ अच्छा संपर्क रहा है। सावित्रीजी तो एक श्राविका के रूप में हैं। श्राविका होना बड़ी बात होती है। जीवन-भर आदमी धर्म की चेतना में रह सकता है। अभी आप जैविभा इंस्टीट्यूट में कुलाधिपति पद पर सेवाएँ दे रही हैं।

ज्ञान का दान भी एक बड़ा दान होता है। ज्ञान के बिना आदमी एक प्रकार से अंधा सा रह सकता है। विद्यार्थी ज्ञान के विकास के साथ अध्यात्म विद्या को भी ग्रहण करने का प्रयास करें। विद्यार्थियों का जीवन सशक्त बन सकता है। नैतिक मूल्यों के प्रति रूझान हो।
पास होना एक बात है, विकास होना अलग बात है। ज्ञान के विकास की भीतर में ललक हो। यह विद्यार्थी जगत के लिए अच्छी बात हो सकती है। सेवा के साथ अच्छे संस्कार भी जीवन में हों। विद्यार्थी विद्यालय में ज्ञान संपन्न और सदाचार संपन्न हो। विद्या और आचार का बड़ा महत्त्व होता है। यह एक दृष्टांत से समझाया कि लगान के आगे वरदान की भी अपेक्षा नहीं होती है।
शिक्षक भी परिश्रमशील, शिक्षार्थी भी परिश्रमशील, संचालक मंडल और माता-पिता भी जागरूक रहें। इन चारों की जागरूकता से विद्यालय में अच्छा विकास हो सकता है। अच्छा निर्माण करने वाला संस्थान बन सकता है। इन विद्या संस्थानों से अच्छे विद्यार्थियों का निर्माण हो। ये जिंदल परिवार से संबंधित संस्थान भी ज्ञान और आचार की शिक्षा देने वाला संस्थान बने, मंगलकामना।
उग्रविहारी, तपस्वी मुनि कमल कुमार जी ने अपने भाव पूज्यप्रवर के चरणों में उद्घाटित किए।
पूज्यप्रवर के स्वागत-अभिवंदना में जगदीश जिंदल, सावित्री जिंदल, पूर्व एसडीएम अमरदीप जैन, हिसार सभाध्यक्ष संजय जैन एवं ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि जीवन में सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र का संगम होता है तो हम साधक से सिद्ध बन सकते हैं।