यादें... शासनमाता की - (3)

यादें... शासनमाता की - (3)

9 मार्च, 2022, परम पूज्य आ0प्र0 प्रतिदिन की तरह प्रातः करीब 7 बजे सा0प्र0 के पास पधारे और नीचे बैठकर वंदना की। वंदना के पश्चातµ
सा0प्र0: आचार्यश्री पधारे तब नीचे नहीं विराजे, खड़े-खड़े ही वंदना करा लेवें।
फिर लगभग 9ः30 बजे पुनः आ0प्र0 पधारे।
सा0प्र0: बहुत बड़ी कृपा करवाई, दूसरी बार पधारे।
आ0प्र0: हम तो दोपहर में भी यहाँ रह जाएँ, किंतु दोपहर में मेरे पास लोगों की भीड़ अधिक होती है। ऐसे तो यहाँ भी होती है। (साध्वीवर्या जी से) तुम आधा-आधा घंटा से हमें रिपोर्ट देती रहो।
सा0 सुमतिप्रभा: आ0प्र0 एक-एक घंटे से रिपोर्ट ले लें।
सा0प्र0: 1-1 घंटे से।
आ0प्र0: ठीक है, एक-एक घंटे से दे देना, जैसे 10 बजे, 11 बजे, 12 बजे---।
मुख्य नियोजिकाजी: कभी मैं भी आ जाऊँ?
आ0प्र0: अभी तो ये ही (साध्वीवर्या जी की ओर देखते हुए) आ जाएँ। अभी तो क्या दिक्कत है? गुरुदेव के समय भी तो साध्वियाँ आती थीं।
सा0प्र0: गुरुदेव कृपा करवाएँ तो सबमें शक्ति आ जाए। प्रत्येक व्यक्ति सारे काम कर समता है। गुरुदेव ऐसी गणित मुझे भी दिलवाएँ।
आ0प्र0: हम यहाँ न रहें तो एक-एक घंटा की रिपोर्ट का जिम्मा साध्वीवर्या पर रहे। जरूरत पड़े तो बीच में भी आ सकती है। कदाचित् स्वयं न आए तो साध्वियों को भी भेज सकती है। (साध्वियों से)µसा0प्र0 जी आहार आदि कुछ लेते हैं क्या?
सा0 सुमतिप्रभा: केवल लिक्विड ही ग्रहण करवाते हैं।
सा0प्र0: गुरुदेव इतनी मेहनत नहीं भी करवाएँ तो मुझे संतोष है।
आ0प्र0: मैं सुबह से लेकर सायं त्याग तक यहीं रहना चाहता हूँ। किंतु मेरे कठिनाई केवल एक ही हैµलोग आएँ तो आपके कहीं असाता न हो जाए।जनता की भीड़ आने से आपको दिक्कत होगी?
सा0प्र0 ने स्वीकारोक्ति में अपनी गर्दन हिलाई।
आ0प्र0: ठीक है। ये भी मन में आता है कि जनता को तो हम नियंत्रित भी कर लेंगे।
(साध्वीवर्या से) तुम पास में ही यहीं कहीं बैठी रहो।
दोपहर में 2ः33 पर आ0प्र0 पुनः सा0प्र0 के पास पधारे।
(कल सायं ब्लडप्रेशर कम हो गए, इसलिए रात भर नारोड 11 नंबर पर चला, सा0 कल्पलता जी आदि कई साध्वियाँ रात्रि में भिन्न सामाचारी में रही)।
आ0प्र0: (सा0प्र0 से) µ रात की भिन्न सामाचारी की आलोयणा बता दें?
सा0प्र0: तहत्।
आ0प्र0: 2 घंटा जाप-स्वाध्याय।
अप्पाणमेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ।
अप्पाणमेव अप्पाणं, जइत्ता सुहमेहए।।
कहा गयाµआत्मा आत्मा से युद्ध करो। प्रश्न होता है कि कौन सी आत्मा किसके साथ युऋ करें? द्रव्य आत्मा तो एक है, पर भाव आत्मा अनेक हैं। हमें कषाय आत्मा, अशुभयोग आत्मा, मिथ्यादर्शन आत्मा से लड़ना है। लड़ने वाली चारित्र आत्मा है, शुभयोग आत्मा है।
लड़ते-लड़ते कोई मर भी जाए तो वह उसकी विजय हो गई।
हमारी चारित्र आत्मा, शुभयोग आत्मा लड़ती रहे। नोमयं ते पसंसामो---
मान लो मैं अठाई तो नहीं कर सकता, पर कषाय को तो पतला करूँ।
आरक्षित नहीं, कषाय पतला है तो आत्मा की विजय हो सकती है।
ऐसा करते-करते बहुत पुण्य का भी बंधन हो जाता है। हालाँकि पुण्य की, निदान की भावना नहीं आनी चाहिए। साधु एक तरह से यौद्धा होता है। मोहनीय कर्म को कृश कर दें तो हमारी आत्मा परम गति को प्राप्त हो सकती है। लड़ते-लड़ते कभी चोट भी आ जाए तो फिर लड़ें। लड़ते-लड़ते कभी विजय प्राप्त हो सकती है।
आ0प्र0: संयम में साझ (सहयोग) देना भी बहुत बड़ी बात है।
सा0प्र0: आचार्यश्री सबको सहयोग दिलवा रहे हैं।
आ0प्र0: आपने भी साध्वियों को कितनी चित्त समाधि प्रदान की है, एक बात आती हैµआचार्यों के 3 या 5 भव होते हैं, वे कैसे होते हैं? कोई संयम में स्वयं पूरे जागरूक रहते हैं और कितनों-कितनों को संयम का पालन करवाते हैं। वैसे ही सा0प्र0 भी लंबे समय तक संयम में साझ दे तो उनके भी भव 3-5 या जो भी हो, कम हो सकते हैं। कई बार कितनी ही तरह की बातें आ जाएँ पर झुंझलाहट नहीं आए। धैर्य से बात करें। सा0प्र0 भी बहुत शांति से बात करते हैं। कहते हैं ना कि आदमी पी जाए, कैसे ही।
मुख्यमुनि: शंकर ही पी सकता है।
सा0प्र0: गुरुदेव का सौंपा हुआ काम सभी कर लेते हैं।
आ0प्र0: ये हर किसी के वश की बात नहीं होती।
मुनि कीर्ति: सा0प्र0 जी का संत-सतियों सब पर प्रभाव है। हर साध्वी के साथ अपनत्व है।
सायं 5ः25 पर मुनि धर्मरुचिजी स्वामी सा0प्र0 के पास आए।
सा0प्र0: मेरा अधूरा कार्य आपको पूरा करना है।
मुनिश्री: आपकी प्रेरणा ने मेरे जीवन में बहुत कार्य किया है।
सा0प्र0: गुरुदेव तुलसी की बहुत कृपा आप पर रही।
मुनिश्री: आपका भी मेरे बहुत सहयोग रहा है।
सा0प्र0: आप स्वास्थ्य का ध्यान रखवाएँ, काम चलता रहे।

(क्रमशः)