अर्थ और काम पर धर्म का अंकुश रहना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अर्थ और काम पर धर्म का अंकुश रहना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

राष्ट्रपति भवन में महामहिम राष्ट्रपति एवं आचार्यप्रवर की भेंट

कीर्तिनगर, दिल्ली, 28 मार्च, 2022
जन-जन का कल्याण के लिए निरंतर गतिमान तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता सोमवार को राष्ट्रपति भवन पधारे। भारत के प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के आग्रह पर आचार्यप्रवर राजपथ होते हुए राष्ट्रपति भवन पहुँचे।
आचार्यप्रवर के आगमन से प्रफुल्लित महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद आचार्यश्री महाश्रमण जी के महाश्रम की प्रशंसा कर प्रणत हो रहे थे। 50 मिनट के वार्तालाप में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद एवं आचार्यश्री महाश्रमण जी में आध्यात्मिक एवं समसामायिक चर्चा हुई। राष्ट्रपति ने मुलाकात के दौरान बिहार के राज्यपाल कार्यकाल की मुलाकात की चर्चा की। राष्ट्रपति के निवेदन पर आचार्यप्रवर ने वहाँ गोचरी की भी कृपा करवाई। गोचरी करवाकर महामहिम स्वयं को कृतार्थ महसूस कर रहे थे।
तदुपरांत वहाँ से विहार कर आचार्यप्रवर राजेंद्र नगर स्थित तेजकरण सुराणा के निवास स्थान पर पधारे। मुख्य प्रवन में महान कीर्तिधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में जन्म और मृत्यु एक सच्चाई है। जन्म है तो मृत्यु भी अवश्य होगी ही। जन्म और मृत्यु के बीच में जीवन होता है।
आज मैं राष्ट्रपति भवन गया था। राष्ट्रपति जी से मिलना हुआ व कुछ वार्तालाप भी हुआ। अध्यात्म की चर्चा चली। राष्ट्रपतिजी की भी कुछ जिज्ञासाएँ थीं। जन्म-मरण के विषय में बात चली कि जन्म लेना कब शुरू हुआ? किसके कितने जन्म हो गए। जन्म-मरण का प्रारंभ बिंदु नहीं है। किसी-किसी जीव के जन्म-मृत्यु के चक्र का अंत अवश्य हो सकता है। अनंत-अनंत काल से हमारी आत्माएँ जन्म और मरण के चक्र में चल रही हैं।
मैंने उन्हें जैन धर्म के आत्मवाद और कर्मवाद की बात बताई। मोहनीय कर्म जितना प्रबल बन जाता है, आदमी पापी बन जाता है। मोहनीय कर्म जितना-जितना हल्का पड़ता है, उतना-उतना जीव आध्यात्मिक बन जाता है।
जैन धर्म में वीतराग शब्द आता है, तो श्रीमद्भगवत गीता में स्थितप्रज्ञ शब्द आता है। जैन धर्म में राग-द्वेष की बात बताई गई है, तो गीता में काम और क्रोध की बात बताई गई है। श्रीकृष्ण और अर्जुन के इस संवाद को विस्तार से समझाया कि वो कौन-सा तत्त्व है, जो प्राणी को पाप में धकेल देता है। काम और क्रोध ये दो वृत्तियाँ हैं, जो प्राणी को अपराध की ओर ले जाती हैं।
सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति की बात चलीं। अहिंसा यात्रा समापन की भी बात चली। मैं दिल्ली में होते हुए भी आपके पास आ नहीं सकता। यातायात की असुविधा हो जाती है। आतिथ्य सत्कार भी करना चाहा। बाद में उनके हाथ से गोचरी ली। राष्ट्रपति जी की इच्छा थी कि मिलना हो जाए, तो उनसे मिलना हो गया।
जीवन और मृत्यु के बीच जीवन होता है। धातव्य यह होता है कि आदमी जीवन कैसे जीता है। जीवन में धार्मिकता- आध्यात्मिकता है या नहीं। जीवन में धर्म की संपदा कितनी है, वो खास बात है। धन की संपदा है, वो साथ चलने वाली नहीं है। धर्म का फल साथ में जा सकता है। आदमी सोचे कि मैं धन के लिए कितना करता हूँ और धर्म के लिए कितना करता हूँ।
धन के साथ धर्म को जोड़ दूँ। धन के अर्जन में मेरे धर्म की चेतना है या नहीं। नैतिकता, प्रामाणिकता, सच्चाई कितनी है। धन के साथ धर्म जुड़ जाता है, तो धन भी अपवित्र होने से बच सकता है। धन के साथ अधर्म जुड़ने से धन अपवित्र हो जाता है।
अर्थ और काम गार्हस्थ्य में चलते हैं, इन पर धर्म का अंकुश रहना चाहिए। जीवन रूपी रथ के दो पहिये अर्थ और काम हैं, जीवन के रथ में ज्ञान का प्रकाश भी हो और साथ में धर्म के अंकुश रूपी ब्रेक भी हों, वरना जीवन में तनाव आ सकता है।
आदमी को जीवन जीना है, तो शांति का जीवन जीए। आध्यात्मिक आनंद के साथ जीए तो अच्छी बात है। जीवन में दुःख-संताप या तनाव है, चिंता और भय है, वह जीवन बढ़िया नहीं। जीवन-विज्ञान हमें जीवन कैसे जीएँ का संदेश देता है। आध्यात्मिक साधना में भी कुछ समय लगाना चाहिए। आदमी व्यस्त रहे, पर अस्त-व्यस्त न रहे। शांति रहे।
जीवन हमारा आनंदमय-शांतिमय रहे, ऐसी जीवन की शैली रहे। कल की चिंता कल करें। कल का ज्यादा भरोसा नहीं। जो काम आज करना है, उसे कल पर न छोड़ें। कल पर वही आदमी काम छोड़ता है, जिसकी मौत के साथ दोस्ती हो।
आदमी जागरूक रहे कि धर्म का काम कल पर न छोड़े। हमारा ये जीवन भी अच्छा रहे और आगे का जीवन भी अच्छा रहे, ऐसा जीवन हम जीएँ।
दोपहर में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे आचार्यप्रवर की सन्निधि में उपस्थित हुई। उन्होंने शासनमाता कनकप्रभाजी को श्रद्धांजलि समर्पित कर आचार्यप्रवर से आशीर्वाद प्राप्त किया।
आज यहाँ सुराणा परिवार में आना हुआ है। पूरे परिवार में धर्म के संस्कार रहें, मंगलकामना।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में सिद्धार्थ सुराणा ने अपने जीवन के अनुभव सुनाए। परिवार की महिलाओं ने स्वागत गीत की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।