हितकर और श्रेयस्कर का जीवन में समाचरण करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हितकर और श्रेयस्कर का जीवन में समाचरण करें: आचार्यश्री महाश्रमण

बहादुरगढ़, 30 मार्च, 2022
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी भारत की राजधानी दिल्ली को अपने पावस प्रवास से उपकृत कर आज 14 किमी का विहार कर हरियाणा राज्य के बहादुरगढ़ में पन्नालाल बैद के निवास पर पधारे।
अनंत आस्था के आस्थान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्र में बताया गया है कि आदमी सुनकर कल्याण और पाप को जानता है। जो श्रेय है, उसका समाचरण करें।
आदमी के पास श्रोतेन्द्रिय होती है और भी पंचेन्द्रिय प्राणियों के कान होते हैं। देव, मनुष्य, तिर्यंच, पंचेन्द्रिय एवं नारकीय जीवों के पास श्रोतेन्द्रिय होती है। सुनना ज्ञान का एक माध्यम है। आदमी अच्छी और बुरी बातों को भी सुन लेता है। गलत को भी जान लेना अपेक्षित होता है, ताकि आदमी गलत से दूर रहकर बच सके। संतों-गुरुओं के प्रवचन को कितने लोग सुनते हैं।
प्रश्न है कि सुनने के बाद जान लिया फिर क्या करना चाहिए। जो गलत है, उसे छोड़ना चाहिए। जो अच्छा, सही, हितकर, श्रेयस्कर है, उसका समाचरण आदमी को करना चाहिए। आदमी के भीतर अच्छाइयों-गुणों का विकास होना चाहिए। किसी में अच्छी बातें लगें उसे ग्रहण करना चाहिए, गलत को ग्रहण न करें, यह एक दृष्टांत से समझाया कि हर व्यक्ति में अच्छी-बुरी बातें हो सकती हैं, पर हम उनसे अच्छी बातें ही ग्रहण करने का प्रयास करें।
आदमी सुनता है, जानता है, फिर अच्छा क्या है, उसे ग्रहण करना चाहिए। संतों-गुरुओं का प्रवचन सुनना भी अच्छा है। जीवन में कितना उतारेगा यह बाद की बात है। सुनने से उतने समय आदमी पापों से बच सकता है। जितना समय प्रवचन सुनते हैं, उतना समय तो सार्थक और धर्ममय हो जाता है। बार-बार सुनने से कोई ऐसी बात मन को छू जाए कि आपके जीवन में भी परिवर्तन आ सकता है। इसलिए संतों का अच्छा प्रवचन सुनना लाभ का सौदा हो सकता है।
साधु को भी प्रवचन करने से लाभ है। श्रोता प्रवचन को जीवन में उतारे न उतारे पर वक्ता अगर अनुग्रह-निर्जरा की भावना से परोपकार की भावना से प्रवचन करता है, तो साधु को तो निर्जरा का लाभ हो ही जाएगा। साथ में ज्ञान भी और पुष्ट हो जाता है। सुनने वाले तीन तरह के होते हैंµसोता, श्रोता और सरोता। आचार्य भिक्षु एवं आसोजी श्रावक के प्रसंग से समझाया कि गुरु का तो काम होता है, प्रेरणा-प्रतिबोध देना, ज्ञान में आगे बढ़ाना।
गुरु-गुरु में अंतर होता है। गु का अर्थ हैµअंधकार और रू का अर्थ है उसको दूर हटाने वाला। जो अंधकार को दूर कर दे वह गुरु होता है। जीता वही है, जो जागता है। सरोता का तो काम है, गलती निकालना। बात को काटना। आदमी प्रवचन में आए तो सोता या सरोता न बने श्रोता बने। साधु के पास बैठने का एक लाभ यह मिल सकता है कि कुछ सुनने को मिल जाए।
हमारे साधु-साध्वियाँ कितना प्रवचन करते हैं। बार-बार सुनने से कोई ऐसी प्रेरणा भी मिल जाती है कि आदमी के जीवन की दशा और दिशा बदल जाए। अध्यात्म एक ऐसा तत्त्व है, जो शांति का मार्ग है। हिंसा अशांति का मार्ग है, अहिंसा शांति का मार्ग है। शास्त्रकार ने कहा है कि सुनने से हमें कितना ज्ञान होता है। सुनना और देखना ये दो सक्षम माध्यम प्रतीत होते हैं, ज्ञान प्राप्ति के लिए। हम इन दोनों श्रोतेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय का अच्छा उपयोग करें। ग्राहक बुद्धि से सुनें ताकि कुछ हम ग्रहण कर सकें। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।