असाधारण में साधारण और साधारण में असाधारण थी साध्वीप्रमुखाश्री

असाधारण में साधारण और साधारण में असाधारण थी साध्वीप्रमुखाश्री

सृष्टि दुगड़
परम श्रद्धेय युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी के श्रीचरणों में वंदन। विराजित सभी चारित्रात्माओं को नमन। आज साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की स्मृति सभा में मैं क्या कहूँ? मेरे पास शब्द ही नहीं, शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी को तीन-तीन आचार्यों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। आचार्य तुलसी ने उन्हें संघमहानिदेशिका, महाश्रमणी जैसे पद से संबोधित किया। आचार्य महाश्रमणजी ने उन्हें असाधारण बना दिया और लाडनूं में शासनमाता का स्थान प्रदान किया। वे संघ की शासनमाता बनी, परंतु मेरी तो दादीसा महाराज ही थीं। वह असाधारण में साधारण थी और साधारण में असाधारण। इतने सारे अलंकरण, संबोधन और इतना ऊँचा पद व सम्मान पाने के बाद भी जब वह हमसे बात करती थीं तो हमें पता ही नहीं चलता था कि वह इतनी बड़ी महान व्यक्तित्व हैं। हमेशा हमसे छोटी-छोटी बातें पूछती थीं और हमें प्रेरणा भी देती थीं, उनका व्यक्तित्व इतना विशाल था। हालाँकि पढ़ाई के कारण मैं उनके दर्शन बहुत कम कर पाती थी फिर भी जब भी मुझसे मिलती तो मेरी पढ़ाई से लेकर हर चीज के लिए पूछती, उनके अंतिम समय में जब हम लोग दर्शन कर रहे थे, तब उन्होंने मुझे बचपन के नाम से ही पुकारा। वह इतनी सजग थीं कि उन्हें हमारी सारी बातें याद थी।
दादी सा महाराज सचमुच एक सूरज ही थी जिनका प्रकाश और ममता हर किसी के लिए बिना भेदभाव के था। उनका वह मुस्कराता चेहरा हमेशा मेरी नजरों के सामने रहेगा और मुझे शक्ति एवं प्रेरणा देता रहेगा।

विघ्नहर्ता, फल दाता, शासनमाता थारो नाम!