श्रम की क्या हम गाथा गाएँ

श्रम की क्या हम गाथा गाएँ

श्रम की क्या हम गाथा गाएँ

साध्वी चेतनप्रभा


साम्य योग में सम्मुख रखे महाश्रमणी को
श्रम सेवा स्वाध्याय प्रेरणा मिले सभी को
व्यवहार बोध में किया उजागर तुमको
गुरु तुलसी का वरदान मिला है हमको।

श्रम की क्या हम गाथा गाएँ
श्रम था जीवन का सहचर
महाश्रमणी तुम महाश्रमिक थी
कह रहे धरती अम्बर।।

कुशल नेतृत्व मिला तुम्हारा
चारों तीर्थ की सेवा करती
स्वयं का तन-मन विसरा कर
जन-जन की पीड़ा तुम हरती।।

ब्रह्म बेला की मधुर तान
रजनी की थी मौन आवाज
बहती ज्ञान की निर्मल धार
स्वाध्याय निष्ठा है इसका राज।।

श्रम सेवा स्वाध्याय की मैं
कर आराधन मंजिल पाऊँ
तेरे पद्चिह्नों पर चलकर
मैं भी गुरु दिलवासी बन जाऊँ
शीघ्र भव सागर तर जाऊँ।।