शासनमाता कनकप्रभा जी के प्रति

शासनमाता कनकप्रभा जी के प्रति

शासनमाता कनकप्रभा जी के प्रति

साध्वी त्रिशला कुमारी

जय-जय शासनमाता! अंतर से स्वर निकले।
वीतरागता के पथ पर ये कदम चले।
आत्मा से जोड़ा तार, सिद्धि के द्वार खुले।।आं।।

गुरु तुलसी की कृपा, बने कला से कनकप्रभा।
साध्वी प्रमुखापद पा, फैलाई गण आभा।
महाश्रमणी अलंकरण हो---शासन के भाग्य खिले।।1।।

असाधारण प्रमुखा, अनुपम कार्यशैली।
भर दिया है गण भंडार, अद्भुत चिंतनशैली।
साहित्य सृजन करके हो---रच दिए स्वस्तिक उजले।।2।।

गुरु भक्ति रूं रूं में, इंगित पर अर्पित प्राण।
श्रम सेवा और समर्पण, गणहित तन मन कुर्बान।
गुरु महाश्रमण कृपा---हो दिल के अरमान फले।।3।।

युगप्रधान गुरुवर ने, संथारा पचक्खाया।
जन्मों के पुण्य फले, दुर्लभ अवसर आया।
सौभागी शासन माँ हो--- गुरुवर की शरण मिले।।4।।

लय: कंटालिय वाले की...