गुस्से को अस्तित्वहीन बनाने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गुस्से को अस्तित्वहीन बनाने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

सांपला, 31 मार्च, 2022
अपने पावन विचारों से जन-जन को पावन बनने की प्रेरणा देने वाले महातपस्वी आचार्यश्री प्रातः 9 किमी का विहार कर सापला सिथत शिवशक्ति बाबा कालीदास धाम पधारे।
शांत सौम्य-मूर्ति आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना देते हुए फरमाया कि शास्त्र में एक श्लोक में चार चरण गुंफित किए गए हैं। इन चार चरणों से जीवन व्यवहार और आध्यात्मिक लाभ की शिक्षाएँ प्राप्त की जा सकती हैं।
पहली बात है कि बिना पूछे न बोलें। यह जीवन के लिए अच्छी बात है, पर कहीं-कहीं बिना पूछे बोलना भी महत्त्वपूर्ण हो सकता है। कोई पूछे तो क्या करें। उस समय झूठ मत बोलें। बोलो तो सही बोलो। संभव न हो तो मृषा विरत रहने का प्रयास करें। हर सत्य को बोलना भी जरूरी नहीं है। सारा सत्य सबके सामने उजागर करना उचित भी नहीं और शायद जरूरी भी नहीं होता।
दशवेआलियं में कहा गया है कि साधु मृषावाद ना बोले, पर सत्य बोलना नहीं कहा गया है। झूठ नहीं बोलना व्यापक नियम है, पर सत्य ही बोलना व्यापक नियम नहीं है। सत्य बात बोलने में विवेक रखें कि कौन सी बात बोलनी, कौन सी नहीं बोलनी है।
साधु कानों से बहुत सुनता है, आँखों से बहुत देखता है पर सारा सुना हुआ, सारा देखा हुआ साधु के लिए कहना उचित नहीं भी हो। अनुचित कहना भी नहीं चाहिए। आँख और कान का विषय अनेक चीजें बन सकती हैं, पर वाणी का विषय सब चीजें नहीं बननी चाहिए।
जीवन में कभी-कभी गुस्सा आ जाता है, पर गुस्से को पी लेना यह साधना है। कम खाओ-स्वस्थ्य रहो, गम खाओ मस्त रहो और नम जाओ-प्रशस्त रहो। कोप-गुस्से को असत्य करो। गुस्से को विफल-अस्तित्वहीन बनाने का प्रयास करो। गुस्सा मनुष्यों का शत्रु है। गुस्से को विफल करने के लिए उस समय मौन कर लो। थोड़ा दीर्घ श्वास का प्रयोग कर लो या वो स्थान एक बार छोड़ दो।
चौथी बातµप्रिय-अप्रिय स्थितियाँ आएँ, उनको धारण कर लो। राग-द्वेष में मत जाओ। प्रतिक्रिया अनपेक्षित मत करो। ज्ञाता, दृष्टा, समता का भाव रखने का प्रयास करें। ये चार बातें हमारे व्यावहारिक जीवन के लिए पथदर्शन है। इनसे आत्मा का भी हित होता है। सच्चाई सीधा-सपाट रास्ता है। झूठ का रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा, कादा-कीचड़ वाला होता है। सच्चाई परेशान हो सकती है, परास्त नहीं। रास्ता भले कठिन हो, पर मंजिल बढ़िया हो। गृहस्थ हो या साधु रास्ता परम का ही हो।
आज चतुर्दशी है। 15 दिन पहले साध्वीप्रमुखाजी कालधर्म को प्राप्त हो गई थी। उन्होंने सारस्वत साधना की। ज्ञानात्मक, साहित्यात्मक साधना की। तीन आचार्यों के काल में उन्होंने साध्वीप्रमुखा के रूप में अपनी सेवा दी थी। साध्वी समाज पर उनका सेवा का बड़ा उपकार था। जीवन में क्या स्थिति कब बन जाए, कह पाना मुश्किल है। अंतिम समय में समता-शांति रही। हमें भी उन्हें सुनाने का अवसर प्राप्त हुआ। ‘शासनमाता का सादर स्मरण करें हम’ गीत का सुमधुर संगान किया।
आज चतुर्दशी पर हाजरी का वाचन हुआ। मर्यादाओं का वाचन हुआ।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।